SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ T आहार पानी—ग्रहण करके जीते हैं । श्वासोच्छ्वास लेते - छोडते हैं । इनके भी प्राण ४ होते हैं । इनके आयुष्यों की गणना की गई है । वनस्पति के मुख्य २ भेद बताए हैं— १) साधारण वनस्पतिकाय और २) प्रत्येक वनस्पतिकाय के भेद से वनस्पतिकाय मुख्य २ भेद में विभक्त है । — १) साधारण वनस्पतिकाय - साधारण शब्द का यहाँ अर्थ है सर्व सामान्य In General – Common रूप से सभी जीवों के लिए एक साथ सामान्य रूप से आहार प्राण - जन्म - मरणादि सब कुछ एक साथ सामान्य रूप से रहे उसे साधारण कहा है। ऐसे वनस्पतिकाय के जीव जो इस प्रकार के हैं उन्हें साधारण वनस्पतिकायिक जीव कहा जाता है । ये भी २ प्रकार के हैं— १) सूक्ष्मसाधारण वनस्पतिकाय तथा २) बादर साधारण वनस्पतिका १) सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकायिक जीव— १७० निगोद के गोले पहले हम ब्रह्माण्ड के स्वरूप में समस्त १४ राजलोक का जो स्वरूप देखकर आए हैं ऐसे १४ राजलोकमय समस्त ब्रह्माण्ड में असंख्य गोले भरे पडे हैं। जैसे बच्चे साबुन का पानी बनाकर फूंक मारकर नली विशेष से उडाते हैं और कैसे Air Bubbles फैलते हैं उड़ते हैं । उसी तरह 1 असंख्य गोले इस बह्माण्ड में हैं । जैसे काजल डिब्बी में भरी रहती है वैसे ठूंस-ठूंसकर ये असंख्य गोले संपूर्ण लोक में भरे पडे हैं । कहीं भी एक सूई डालने जितनी जगह भी खाली नहीं है । इन एक एक - प्रत्येक गोलों में अनन्त - अनन्त जीव - चेतनात्माएँ भरी पडी है । बस, यही जीवों की मूलभूत खान (खदान) है । जीवों की आध्यात्मिक विकास यात्रा -
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy