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________________ श्री संघ की धार्मिक पाठशाला की स्थायी योजना संघ के साधारण खाते में तथा संघ द्वारा ली गई उपाश्रय हेतु के भवन की जगह के प्रति वर्ग चौरसफुट की योजना में, चातुर्मास आराधना फण्ड में, तथा साथ ही जीवदया, प्राणी रक्षादि कई खातों में सुंदर फण्ड हुआ। पूना में निर्माणाधीन “वीरालयम्" की योजना के अन्तर्गत होनेवाले ध्यान योग साधना केन्द्र हेतु आदि अनेक शुभ कार्यों के लिए अनेक उदार दानवीर दान दाताओं ने अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग किया। कल्पसूत्र तथा बारसासूत्र पूज्यश्री अरूणविजयजी म.सा. को वहोराने के कल्पनातीत सुंदर चढावे बोले गए। उभरती जनता ने काफी उत्साह पूर्वक तन-मन-धन से पूरा लाभ लिया। कल्पसूत्र का अर्थ एवं मर्म समझाने की पूज्यश्री की हथोटी सचमुच अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय थी। साथ साथ ब्लैक-बोर्ड पर भी चार्ट-चित्रों के साथ समझाने से स्त्री-पुरुष–बच्चों के भी गले उतरता था । बडी अच्छी शान्ति बनी रहती थी। दोनों समय प्रवचन श्रवणार्थ जिज्ञासु वर्ग दौडकर आते थे । १४ स्वप्नों का उतरना अपने आप में एक अनूठा प्रसंग था। १४ स्वप्नों की अद्भुत बोलियों के कारण देवद्रव्य की वृद्धि काफी प्रशंसनीय रही। प्रत्येक बात में अक्कीपेठ की बोलियां काफी ज्यादा रही। पूज्यश्री का गणधरवाद सुनना यह अपने आप में एक अविस्मरणीय लाभ रहता है । सचित्ररूप में ब्लैकबोर्ड पर समझाते हुए प्रस्तुतिकरण एक अद्भुत प्रशंसनीय पद्धति है। सबको तुलनात्मक दृष्टि से स्पष्ट समझाना यही पूज्यश्री की भावना अनुसरणीय है। सार्थ संवत्सरी प्रतिक्रमण १२ महीने का वार्षिक संवत्सरी प्रतिक्रमण छोटे-बड़े सभी करने आते हैं। अक्कीपेठ में विशाल प्रवचन मण्डप में— बडी संख्या में चारों तरफ से युवक वर्गादि काफी लोग विशेष रूप से संवत्सरी प्रतिक्रमण पूज्य गुरुदेव के पास करने हेतु पधारे । पूज्यश्रीने प्रतिक्रमण का मर्म, अर्थतथा रहस्य समझाते हुए प्रतिक्रमण कराया। विशेषकर बृहद् अतिचार विस्तार से समझाते हुए लोगों की आंखे पश्चात्ताप के भाव से भर दी। सादी सरल भाषा में सबको बोलाते थे। सूत्रों की तथा विधि की रनिंग कोमेन्ट्री देकर पूज्यश्री ५ घण्टे तक संवत्सरी प्रतिक्रमण कराते हैं। अनेकों की आंखों में पश्चाताप की भावना की गंगा-यमुना बहने लग जाती है । प्रतिक्रमण की समाप्ति के पश्चात् बडे-बडे बुजुर्गों के मुंह से ये उद्गार निकलते थे कि...ऐसा समझाते हुए शान्ति से प्रतिक्रमण जीवन में आज ही प्रथमबार करने का अवसर मिला। अनेक तरीकों से पर्युषण महापर्व की आराधना सम्पन्न हुई। 14
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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