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अट्ठम
- श्री पार्श्वनाथ भगवानादि जिन नामों के जापादि के अनेकविध अट्ठमों की तपश्चर्या का आयोजन हुआ। अनेक भाग्यशालियों ने अट्ठम किये । श्री संघ ने पारणादि कराके सन्मान करने का लाभ लिया।
“श्री वासुपूज्यस्वामी जैन धार्मिक पाठशाला"
नए.. नए.. संस्थापित श्री संघ में संघ के ही आद्य संस्थापक पूज्य पंन्यासजी म.सा. धार्मिक पाठशाला के भी आद्य प्रणेता बने । पूज्यश्री ने धार्मिक पाठशाला शुरु करने के लिए काफी अच्छी प्रेरणा दी ..... और योजना तैयार की गई। पूज्यश्रीने ही “श्री वासुपूज्यस्वामी भगवान” का नाम जोडकर पाठशाला का नामकरण करने का मार्गदर्शन दिया। इस तरह “श्री वासुपूज्यस्वामी जैन धार्मिक पाठशाला” ऐसा नामकरण कियां गया। श्रावण सुदि में पाठशाला का उद्घाटन उदार दानवीर श्रेष्ठिवर्य श्रीमान शा. दलीचन्दजी सांकरिया के करकमलों से ज्ञानदीप प्रज्वलित करके किया गया । पाठशाला की बालिकाओंने, बालकों ने सुन्दर नृत्य नाटिका, स्वागत गीत आदि प्रस्तुत किये । श्रीमान शा. मीठालालजी महात्मा धार्मिक पाठशाला के शिक्षक नियुक्त किये गए।
पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से ५००० रुपए की कायमी योजना में सुंदर फण्ड एकत्रित हुआ। तथा साथ ही साथ १ वर्ष के ५२ रविवारों की सामूहिक स्नात्रपूजा भी सबकी लिखी गई । दान दाताओं ने उदार हाथ से धार्मिक पाठशाला के प्रति उदार सहयोग प्रदान किया। और आर्थिक दृष्टि से पाठशाला को समृद्ध की गई।
सुबोध भवन में शुरू हुई पाठशाला सुबह, दोपहर और रात इस तरह तीनों समय चलने लगी। प्रति दिन ६ घण्टे चलनेवाली इस पाठशाला में सुबह ७ से १० तक बालक-बालिकाएँ दोपहर को २.३० से ४.०० तक में बडी महिलाएँ, युवतियाँ तथा रात्रि में ७ से ८ में बालक एवं युवक वर्ग अभ्यास करने लगा। प्राथमिक नवकार महामंत्र से लगाकर दो प्रतिक्रमण, पंच प्रतिक्रमण के सूत्र भक्तामरादि स्तोत्रादि सहित नवस्मरण, तथा जीवविचारादि ४ प्रकरण, ३ भाष्य,६ कर्मग्रन्थों का अर्थ सहित अभ्यास चल रहा है। विद्यार्थी विद्यार्थिनियाँ-महिलादि-बालक-बालिकाएँ कुल मिलाकर ४०० के करीब संख्या में पाठशाला में धार्मिक सम्यग् ज्ञान का लाभ ले रहे हैं।