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ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्गं वा श्वभ्रमेव वा । अन्यो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः ॥
ईश्वर के द्वारा ही भेजा हुआ जीव स्वर्ग में नरक में जाता है । ईश्वर की सहायता के बिना कोई भी जीव अपने सुख-दुःख को पाने में, उत्पन्न करने में स्वतन्त्र भी नहीं है एवं समर्थ भी नहीं है । संसारस्थ सभी जीवों के सुख - दुःख की लगाम भी ईश्वर के अधीन रखी है । ईश्वर ही जिसको जैसा रखे उसको वैसा रहना होगा। ईश्वर की इच्छा पर ही सब कुछ निर्भर है । यहाँ तक कि ईश्वर की इच्छा के बिना एक वृक्ष का पत्ता भी नहीं हिल सकता । ईश्वर ही किसी को जिन्दा रखता है ईश्वर ही किसी को मारता है । तो फिर संसार में सभी ऐसा ही कहेंगे-एक खून करनेवाला भी कहेगा मैं, थोड़े ही मारता हूँ-ईश्वर मेरे द्वारा तुम्हें मरवाता है । चोर चोरी करके यह कहेगा कि मैं थोड़ी ही चोरी कर रहा हूँ? मेरे द्वारा तुम्हारा घर चुराकर ईश्वर ही तुम्हें दुःखी कर रहा है । जो कुछ करता है वह सब ईश्वर ही करता है । मनुष्य तो ईश्वर के इशारे पर नाचनेवाली कठपुतली मात्र है ।
अच्छा उपरोक्त स्वीकारें, लेकिन खून - हिंसा - चोरी का पाप भी ईश्वर को ही लगना चाहिए । चूंकि जब ईश्वर ही किसी के जरिये करवाता है । परन्तु यह तो स्वीकार नहीं है । ईश्वर भले ही करवाये परन्तु पाप तो मनुष्य को करनेवाले को ही लगेगा । अरेरे! ईश्वर ने मनुष्य के पास करवाया और फिर भी ईश्वर को पाप नहीं लगता । क्यों नहीं लगता ? बस ! इसका उत्तर इतना ही है कि वह ईश्वर है । जंगल में लुटेरा डाकू भी लूटते समय शेठ को कहेगा - शेठ, तुम्हारे को लूटकर धन लेकर दुःखी करने की आज्ञा मुझे ईश्वर ने दी है, इसलिए मैं आया हूँ । मैं मेरी इच्छा से नहीं लूट रहा हूँ । सब कुछ ईश्वरेच्छा कर रही है । मैं जिम्मेदार नहीं हूँ । ईश्वर जिम्मेदार है । इस तरह संसार में आतंक का साम्राज्य फैल जाएगा। फिर तो रोज इतना उपदेश क्यों देते हैं ? सब निरर्थक है । निष्फल है । हमारे द्वारा कल ईश्वर क्या करवायेगा ? या हमें ही कल ईश्वर क्या करेगा ? क्या बनायेगा ? यही निश्चित नहीं है तो फिर हम धर्मादि भी करके क्या करें । नहीं-नहीं ! हम करनेवाले भी कौन होते हैं ? धर्म भी करवाना होगा तब ईश्वर करा देगा । इस तरह तो सभी अनन्त जीव निष्क्रिय हो जाएंगे । और तो ईश्वर कर्तृत्ववादी कहते ही हैं कि संसार निष्क्रिय है ईश्वर की इच्छा के अधीन ईश्वर की आँख के इशारे पर नाचनेवाली कठपुतली मात्र है शेर सिंह - चीता बाघ भी मनुष्य को फाड़कर खाएंगे और यही कहेंगे कि हम क्या करें ? ईश्वर की इच्छा ही ऐसी थी । फिर मनुष्य को भी ईश्वरेच्छा को मान देना चाहिए । अर्थात् मौत के मुँह में जाने के लिए डरना नहीं चाहिए । लेकिन प्रत्यक्ष सिद्ध बात है कि मृत्यु से
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संसार की विचित्रता के कारण की शोध
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