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सभी डरते हैं । कोई भी मरने के लिए तैयार नहीं है । संसार की हालत बडी विचित्र बन जाएगी । एक ही ईश्वर और अनन्त जीवों की व्यवस्था कैसे कर पाएगा । आप कहेंगे हजार हाथ है ईश्वर के, वह सर्वव्यापी है । सर्वव्यापी मानोगे तो अशरीरी मानना पडेगा । शरीरधारी तो सर्वव्यापी हो नहीं सकता। और अशरीरी मानोगे तो सृष्टि की रचना कैसे करेगा । और यदि अशरीरी भी सृष्टिरचना कर सकता है ऐसा कहोगे तो सभी अशरीरी मुक्तात्मा भी सृष्टि करने लग जाएंगे। तो एक सृष्टिकर्ता ही नहीं अनेक सृष्टिकर्ता मानने की आपत्ति आएगी ।
दूसरी तरफ जो राग- - द्वेष ग्रस्त मनुष्य है उसमें इच्छा नहीं रहनी चाहिए। और इच्छा रहती भी है तो अपनी खुद की इच्छा तो मनुष्य के लिए कोई काम नहीं आएगी । क्योंकि मनुष्य की इच्छा तो चलती ही नहीं है । जो कुछ चलती है वह सिर्फ ईश्वर की ही एकमात्र इच्छा चलती है । दूसरी तरफ इच्छा रागस्वरूप में रागादि भाव कर्मजन्य है । मनुष्य कर्मयुक्त है। वह कर्मयुक्त संसार में क्रमोपार्जित इच्छा आदि से त्रस्त है । अनेक इच्छाओं से ऊब गया है। जबकि कर्मरहित है । कर्म नहीं तो राग- - द्वेषादि नहीं और राग- द्वेषादि नहीं तो इच्छा भी नहीं ठहर सकती । इच्छा नहीं तो सृष्टि नहीं । यह मानना पडेगा । अन्यथा ईश्वर में इच्छा मानों और रागादि कर्म को न मानों यह घर का न्याय कहाँ से चलेगा । तो फिर ईश्वर को भी इच्छा के कारण रागादियुक्त कर्मसंयुक्त मानना पडेगा । और ऐसा माननेपर ईश्वरत्व ही चला जाएगा । वह हमारे जैसा सामान्य मनुष्य सिद्ध हो जाएगा । अरेरे! छोटे बच्चे पर हजार मन वजन उठाने की तरह हिमालय जितनी कितनी आपत्तियाँ आएंगी । पार ही नहीं है ।
कर्मफलदाता ईश्वर क्यों ?
पहले तो ईश्वर सृष्टि की रचना करे । फिर जीवों को स्व-इच्छानुसार प्रवृत्ति कराये । अच्छी-बुरी सभी प्रवृत्ति ईश्वर करावे । उसमें बेचारे जिस जीव ने खराब प्रवृत्ति की उसे पाप लगा । उस पाप कर्म का भागीदार करानेवाला ईश्वर भी नहीं बनता, सिर्फ जीव अकेला ही रहता है । अब उस जीव को ईश्वर पाप कर्म के फल के रूप में सजा देता है । उसे सजा देने के लिए नरक में भेजता है और वह नरक भी ईश्वर ने ही बनाई है। वहाँ नरक में उस को खूब मारता है, खूब दुःखी करता है । बेचारे जीव को मार-मार कर चटणी बना देता
| काट-काट कर टुकड़े कर देता है । पकोड़ी की तरह उबलते तेल की कढ़ाई में तलता है । इतना जब ईश्वर करता है तब ईश्वर की दया - करुणा कहाँ गयी ? तो क्या ईश्वर में से
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आध्यात्मिक विकास यात्रा