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________________ दोनों विरोधी दिशाएं, एक तरफ एक साथ नहीं रह सकती वैसे ही भगवान और भूल दोनों तत्त्व एक साथ नहीं हो सकते । इसीलिए भगवान भूल से ऊपर उठे हुए रहते हैं । अभी-अभी संसार में आप देख रहे हैं जो भगवान बनकर भारत से भाग गया था और भारत वापिस आया है चूंकि बेचारे को दुनिया में किसी ने पैर रखने भी नहीं दिया। क्यों नहीं पैर रखने दिया ? क्योंकि तथाकथित बेचारा विवादास्पद भगवान बन बैठा है । अतः उसकी भोग लीला सभी जानते हैं । भोग लीला भी पाप लीला बन चुकी है । अच्छा हुआ कि बेचारे को सद्बुद्धि सूझी कि कहा अब मुझे कोई भगवान मत कहना । अब उसे भगवान कहनेवाले को ही वह खुद बेवकूफ कहता है । भूल करता हुआ भगवान बन नहीं सकता यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है । अनुग्रह - निग्रह समर्थ ईश्वर “ अनुग्रह - निग्रह समर्थो ईश्वर: " ऐसा ईश्वर के विषय में वेद में कहा गया है । यदि ईश्वर चाहे तो किसी पर कृपा करे और यदि न चाहे तो ईश्वर किसी का नाश भी कर दे । यह दोनों सामर्थ्य ईश्वर में है ऐसा वेद कहता है । जगत् कर्तृत्ववादी ईश्वरविषयक धर्मशास्त्र कहते हैं । चूंकि इच्छा तत्त्व के पराधीन ईश्वर है इसलिए ईश्वर चाहे वैसा कर सकता है। यह सब चाहना इच्छा के ऊपर निर्भर है । अतः अनुग्रहात्मक और निग्रहात्मक दोनों प्रकार की इच्छा ईश्वर में सन्निहित है । परन्तु यह पता नहीं कि कब कौनसी इच्छा काम करेगी ? जीवनभर पापाचार में लिप्त रहनेवाला अजामिल भी ईश्वर की कृपा से अन्ततः मोक्ष में चला जाता है । यदि ईश्वर ऐसों पर कृपा करता है, निष्पाप दीन बेचारें कई संसार में पडे हैं उन पर क्यों कृपा नहीं कर देता ? चूंकि ईश्वर दयालु और करुणालु है तो ईश्वर में अनुग्रह की ही बहुलता रहनी चाहिए। दयालु कृपालु - करुणालु बनकर भी ईश्वर निग्रहकर्ता कैसे बन सकता है ? यह तो कितना बडा आश्चर्य है ? शीतल चन्द्र सूर्य से भी तेज आग का गोला बन गया । यह ईश्वर की ऐसी विडंबना क्यों की गई है। दयालु कहकर भी निग्रहता सिद्ध करनी कैसे संभव है ? क्या यह ईश्वर का उपहास नहीं है ? करुणासागर दयालु ईश्वर को संसारस्थ जीवों को देखकर दिल में करुणा उभर आनी चाहिए। क्यों नहीं ईश्वर संसारस्थ बेचारे त्रस्त दुःखी जीवों को मोक्ष में नहीं भेज देता ? सदा के लिए दुःख से छुटकारा तो पा जाय । इसी में ईश्वर की परम करुणा का परिचय है । यदि वह परम कारुणिक है तो उसे ऐसा करना चाहिए। चूंकि ईश्वर में वह शक्ति है । किसी को स्वर्ग में भेजता है, किसी को नरक में ... इत्यादि कहते हुए कहा है कि | I १४४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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