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________________ I इन शब्दों से नमस्कार किया जाय ? हाँ, यह तो भगवान की लीला थी । इस उत्तर से क्या समाधान होता है ? भगवान ये कार्य करे, तो लीला है, और यदि भगवान का ही भक्त यदि भगवान का अनुकरण करके वैसा ही कार्य करे, उदाहरणार्थ आज यदि कोई व्यक्ति किसी स्नान करती हुई स्त्री के वस्त्र चुराता है तो वह लीला नहीं-चोरी है । लोग उसे चोर-चोर बदमाश कहीं का, कह कर पीटने लग जाते हैं। अच्छा तो ऐसे समय में यदि वह चोर यह कह दे कि मैं तो लीला करने आया हूँ। जैसा भगवान ने किया था, वैसा अनुकरण करने आया हूँ तो फिर क्या होगा ? यदि इस कार्य को चोरी कही जाती हो तो ऐसा कार्य जो भी कोई करे वह चोर ही कहा जाना चाहिए। चाहे वह मनुष्य हो, या भगवान हो । धर्मशास्त्र ऐसा पक्षपात क्यों करता है ? एक कार्य को एक ने किया तो लीला, और वही कार्य कोई सामान्य मानवी करे तो चोरी ? वस्त्रचोर, मक्खनचोर के विशेषण लगाकर हम किसी को भगवान कह सकते हैं, परन्तु मनुष्य यदि उस कार्य को करे तो वह भगवान नहीं बन सकता, वह चोर कहलाएगा । ऐसा अन्याय क्यों ? भगवान का आदर्श हमारे लिए कितना ऊँचा होना चाहिए ? बेदाग सर्वथा दागरहित, आदर्श, निष्पाप - निष्कलंक जीवन होना चाहिए तो वह भक्त के लिए अनुकरणीय, अनुसरणीय बनेगा । अन्यथा बाप अण्डे खाए और बेटे को ना कहे यह कैसे चरितार्थ होगा ? क्या भगवान का ऐसा स्वरूप करके हमने भगवान के स्वरूप को विकृत नहीं बनाया है ? कितनी विकृति लाई है । इतना ही नहीं, जिस भगवान को सृष्टि का कर्ता कहा उसे ही सृष्टि का संहारक, विनाशक भी माना, और वह भी ईश्वर । लोक व्यवहार के संसार में देखें कि क्या एक माता अपने संतान को जन्म देकर वही संतान को खाने लग जाएगी ? या क्या वही माँ बालक का गला घोंट कर मार देगी ? यदि मार दे तो क्या वह माँ कहलाएगी या नरपिशाची राक्षसी चुडैल कहलाएगी ? जिस माँ के खून से जो बालक बना है, और बड़े भारी कष्ट सहन करते हुए जिस माँ ने सन्तान को अपने गर्भ में साढे नौ महिने धारण करके रखा है, जिस बालक के वात्सल्य से, स्नेह से माता के स्तन में दूध बना है । आज दिन तक जब तक संतान नहीं थी माता नहीं बनी थी तब तक जो दूध निर्माण ही नहीं हुआ था वह दूध आज संतानोत्पत्ति एवं वात्सल्य स्नेह के कारण बना है। वह दूध अपने सीने से बालक को पिलानेवाली माँ क्या बालक को मार डालने का विचार भी करेगी ? क्या बालक का गला घोंटने का वह स्वप्न में भी सोचेगी ? सोचे तो माँ का मातृत्व कहाँ गया ? अजी, माँ की बात तो छोडिए, पशु-पक्षी में भी यह स्नेह प्रकट देखा जाता है । गाय-भैंस - घोड़ा - गधा भी अपने संतान को जीभ से चाट कर स्नेह व्यक्त करते हैं । वे १४० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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