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तो फिर इच्छा के अभाव में ईश्वर आगे का कार्य कैसे करेंगे ? सृष्टि अधूरी रह जाएगी । फिर इच्छा के बिना तो ईश्वर सृष्टि निर्माण कर नहीं सकेंगे। एक सर्वशक्तिमान नित्य ईश्वर जो समर्थ है उसका सृष्टि निर्माण का एक कार्य अपूर्ण - अधूरा रहेगा यह दोष किस पर डालेंगे ? दूसरी तरफ अधूरी सृष्टि का प्रलय करना भी अनुचित गिना जाएगा ।
यदि आप यह कहो कि ईश्वर लीला के हेतु से अवतार लेते हैं। वह सिर्फ लीला करने आते हैं । लीला करना भी उनका मुख्य उद्देश्य है । ठीक है, यह भी आप कहते हैं— लीला के उद्देश्य से अवतार लेते हैं । परन्तु लीला किस विषय में ? सृष्टि निर्माणार्थ या प्रलय के लिए? न्याय सिद्धान्त मुक्तावली ग्रन्थ की रचना के प्रारम्भ में मंगलचरण के श्लोक में लिखते हैं कि
चूडामणि- कृत-विधुर्वलयीकृतवासुकिः । भवो भवतु भव्यायलीला - ताण्डव - पण्डितः ।। नूतनजलधररुचये गोपवधूटीदुकूलचौराय । तस्मै कृष्णाय नमः संसारमहीरुहस्य बीजाय ॥
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उपरोक्त दो श्लोकों में एक में शंकर की स्तुति की है । भवो शब्द शंकर के लिए प्रयुक्त है । उनके विशेषण के लिए आगे का पद है— “लीलाताण्डवपण्डितः” अर्थात् जो ताण्डव लीला करने में कुशल है - पण्डित है । ताण्डव लीला अर्थात् संहार कार्य में, अर्थात् सृष्टि के प्रलय में जो पण्डित है - कुशल है - जानकार है । शंकर के जिम्मे सृष्टि के प्रलय की जिम्मेदारी है । वे अन्त में नटराज का रूप लेते हैं। उल्टे घड़े पर एक पैर पर खड़े रहकर हाथ में प्रलय का डमरू लेकर नाचने लगेंगे तब सारी सृष्टि का संहार हो जाएगा । प्रलय बड़ा भयंकर विनाशकारी होगा । समस्तं सृष्टि का एक तिनका भी नहीं बचेगा | यह सोचते हुए कभी आश्चर्य लगता है कि क्या इसे लीला समझना ? ईश्वर की तो मानों लीला होती होगी लेकिन अनन्त जीवों की जीवन लीला ही समाप्त हो जाय उसका क्या ? अनन्त जीवों को मारने का पाप किसके सिर पर ? चलो, आप तो कहते हैं ईश्वर को पाप कभी लगता ही नहीं । भलें वह करे तो भी वह लीला कहा जाएगा। दूसरे श्लोक में श्रीकृष्ण को नमस्कार किया गया है । वहाँ भी कृष्ण के विशेषण के रूप में गोप वघूटि दुकूल चौराय यह विशेषण रखा है । अर्थात् स्नान करने के लिए गोपियाँ जब सरोवर या नदी में उतरी वे निर्वस्त्र होकर स्नान करने में मस्त हो गई । तब उनके बाहर रखे हुए कपड़े चुरानेवाले श्रीकृष्ण को मैं नमस्कार करता हूँ । जिनको हम भगवान का दर्जा देते हैं उन्हें क्या इन शब्दों से नमस्कार किया जाय ? हाँ, यह तो भगवान का दर्जा देते हैं, उन्हें क्या
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संसार की विचित्रता के कारण की शोध
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