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लिए यदि आप यह कहो कि ईश्वर क्रमशः एक के बाद एक कार्य करता है । तो पहले-पीछे की क्रम व्यवस्था किस तरह बैठाई है ? पहले क्या बनाया? बाद में क्या बनाया? फिर उसके बाद क्या बनाया? इत्यादि । मनुस्मृति में बताये गये क्रम के अनुसार समझ लिया जाय कि इस क्रम से बनाया है तो क्या सभी कार्य समाप्त हो गये? यदि यह कहते हो तो अब सृष्टिकर्ता ईश्वर की निरुपयोगिता सिद्ध होगी। अब ईश्वर को निरर्थक निष्काम बैठा रहना पड़ेगा तो शायद ईश्वर के नित्यत्व के अस्तित्व पर भी वज्रपात होगा।
अच्छा, क्रमशः उत्पत्ति स्वीकार करने में नाना ईश्वर की कल्पना सामने आयेगी। कितने ईश्वरों ने मिलकर सृष्टि का कार्य किया है ? नाना ईश्वर मानने में एकेश्वरवाद का पक्ष चला जायेगा और नाना नहीं मानें तो अनन्त ब्रह्माण्ड, स्वर्ग, पाताल, नरक, मनुष्य, कृमि, कीट, पतंगादि किस क्रम से क्या और कैसे मानें? इसमें क्रमापत्ति आयेगी। आप ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वगत मान लेंगे तो भी एक ईश्वर और अगणित असंख्य कार्य कैसे होंगे? अच्छा, सशरीरी मानकर तो सर्वव्यापी सर्वगत मानने में परस्पर विरोध आयेगा। और अशरीरी मानने में सर्वव्यापी, सर्वगत हो जायेगा तो सभी कार्य अशरीरी कैसे करेगा? आकाश भी अशरीरी सर्वव्यापी सर्वगत है तो फिर आकाश को ही ईश्वर मानने की आपत्ति खड़ी होगी । वह भी नित्य है । लेकिन आकाश निर्जीव, निष्क्रिय है । ईश्वर तो सक्रिय है ।
___ अच्छा, आप सारी सृष्टि सह-भू एक साथ ही उत्पन्न हुई है ऐसा मानोगे तो या तो ईश्वर को जादूगर मानना पड़ेगा जैसा कि कहते हैं कि हमारे ईश्वर ने एक जादू किया और सारा संसार बन गया । कोई कहता है कि कुन्द शब्द कहा और सृष्टि बन गई । तो इन्द्रादि भी इन्द्रजाल करते हैं । जादगर अपने जादू आदि से कई वस्तुएं बनाते हैं । तो ईश्वर को जादूगर माने या इन्द्रजाल का कर्ता इन्द्र माने? या क्या करें? जादूगर की माया सही भी नहीं होती । वह भूतपिशाच आदि की सहायता भी लेता है। तो क्या ईश्वर भी जादूगर के रूप में पिशाचादि की सहायता लेकर सृष्टि बनाता है ? अच्छा, तो पिशाचादि क्या सृष्टि के अंग नहीं है ? क्या वे ईश्वर के अनुचर हैं, या अंश हैं ?
यदि यह मानने जाएंगे तो ईश्वर की इच्छा के क्रम का क्या होगा? क्या सृष्टि मात्र ईश्वर के संकल्प मात्र से निर्माण हो जाती है? जैसा कि कहा गया है कि- "एकोऽहं बहुस्याम प्रजायेय" एक तो मैं हूँ वह बहुरूपी हो जाऊँ और प्रजोत्पत्ति करूँ । यह संकल्प है या इच्छा है ? इच्छा है तो इच्छा भी ईश्वर में नित्य रहनेवाली है या अनित्य ? यदि नित्य है तो नित्य ही ईश्वर को यह इच्छा होती ही रहेगी। और नित्य ही सृष्टि चलती रहेगी। यदि अनित्य है तो सम्भव है कि सृष्टि कार्य की समाप्ति के पहले भी इच्छा नष्ट हो जाय?
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आध्यात्मिक विकास यात्रा