________________
अशरीरी है वह तो शरीर रचना करते ही नहीं हैं । अन्यथा पुनः संसार में गिरने की आपत्ति खडी होगी । अतः आप इसका उत्तर क्या देंगे ? अशरीरी ईश्वर की शरीर रचना किसी दूसरे ईश्वर ने की ऐसा कहेंगे तो उस दूसरे ईश्वर की रचना किसने की ? तीसरे ने । तो तीसरे की किसने की ? चौथे ? ने!... चौथे की किसने की ? . इस तरह इसका तो कहीं अन्त ही नहीं आएगा। अनावस्था दोष आएगा । यदि मनुष्योत्पत्ति की तरह माता के गर्भ से उत्पत्ति मानें तो फिर माता-पिता को किसने बनाया ? तो फिर ईश्वर के पहले भी सृष्टि माननी पडे तो ईश्वर का सृष्टिकर्तृत्व निरर्थक सिद्ध हो जाएगा। अशरीरी मानने पर कार्य रचना संभव नहीं है ।
यदि आप यह उत्तर दें कि ईश्वर का शरीर हमारे जैसा दृष्य शरीर नहीं था वह तो पिशाच-भूतादि की तरह अदृष्य शरीर था । तो क्या ऐसा पिशाच जैसा शरीर बनाने में ईश्वर का माहात्म्यविशेष कारण है कि हम लोगों का दुर्भाग्य ? यह भी ठीक नहीं है । अदृश्य शरीर से ही माहात्म्य बढे और माहात्म्य के कारण ही अदृश्य शरीर बनाए तो अन्योन्याश्रय दोषग्रस्तता आएगी । अथवा हमारे दुर्भाग्यवश पिशाचादि की तरह अदृश्य शरीर करेगा तो ईश्वर को पिशाचादि रूप में मानना पडेगा । घडा, वस्त्रादि तो सशरीरी के बनाए हुए हैं तो पृथ्वी, समुद्रादि अशरीरी के द्वारा बनाए गये हैं यह कौन मानेगा ? चूंकि वे भी कार्य हैं तो सशरीरजन्य हैं ऐसा मानना पडेगा । अतः यह युक्ति सिद्ध नहीं होती है ।
कालादि की अपेक्षा से विचार करें तो ऐसा प्रश्न खडा होता है कि सृष्टिकर्ता कब उत्पन्न हुआ? यदि सृष्टिकर्ता सादि है तो क्या अपने आप उत्पन्न हो गया ? या किसी अन्य कारण से ? माता-पितादि के कारण या किस कारण ? यदि सृष्टिकर्ता ईश्वर स्वयम्भू है, अपने आप उत्पन्न हो सकता है तो फिर संसार भी अपने आप उत्पन्न हो सकता है यह मानने में क्या आपत्ति है ? चूंकि संसार में अनन्तात्मा हैं। जड़ पुद्गल परमाणुओं के साथ जीव संयोग करके स्वयं उत्पन्न होता है उसी तरह मानना पडेगा ।
दूसरी तरफ यदि संसार को अनादि मानते हैं तो अनादि की तो उत्पत्ति संभव नहीं है । जो उत्पन्न हो उसे अनादि कैसे कहेंगे ? अतः न तो ईश्वर को अनादि कह सकेंगे और
I
न ही सृष्टि को । जो अनुत्पन्न होता है वही अनादि होता है । जैसे कि आत्मा । आत्मा उत्पन्न द्रव्य नहीं है । अनादि अनन्त शाश्वत द्रव्य है । यह भी द्रव्य स्वरूप में है । फिर इसकी उत्पत्ति का कर्ता किसको मानेंगे ? क्या ईश्वर को ? कैसे ईश्वर आत्मा को उत्पन्न करता है तो आत्मा भी अनादि - अनन्त सिद्ध नहीं होगी, वह भी जड़पदार्थवत् सादि - सान्त
संसार की विचित्रता के कारण की शोध
१३१