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________________ सामान्यार्थ इस प्रकार है- हे नाथ ! जो लोग ऐसा कहते हैं कि जगत् का कोई कर्ता है, वह एक ही है, वही सर्वव्यापी है, स्वतन्त्र है, और नित्य है इत्यादि दुराग्रह से परिपूर्ण सिद्धान्तों को स्वीकार करते हैं, उनका तू अनुशास्ता नहीं हो सकता । हे प्रभु ! तू उनका उपास्य नहीं हो सकता। ईश्वरवादी दर्शन जो ईश्वर को सृष्टि का कर्ता-जगत्कर्ता के रूप से स्वीकारते हैं उनका कहना है कि यह संसार जो तीन लोक स्वरूप है, विराट ब्रह्माण्ड विश्वस्वरूप है वह किसी के द्वारा बनाया हुआ है । पृथ्वी, पर्वत, नदी-नद-समुद्र, वृक्षादि जो जो भी कार्य हैं, उसका कारण कोई अवश्य होना चाहिए । चूंकि कारण के बिना कार्य नहीं होता । जैसे बिना अग्नि के धुंआ नहीं निकलता उसी तरह बिना कारण के कार्य कैसे हो सकता है ? तथा पृथ्वी, पर्वत, नदी, समुद्र, वृक्षादि ये सब कार्य हैं यह बात प्रत्यक्षसिद्ध है। तो फिर इनका कोई कर्ता, बनानेवाला कारणरूप होना तो चाहिए। न हो तो यह सृष्टि, विश्व, तीन लोक, इतनी बडी पृथ्वी, महासमुद्र आदि सब कैसे बने ? यदि कोई बनानेवाला ही न हो तो इनकी सत्ता भी नहीं स्वीकारनी चाहिए । और ये तो सब प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं तो इनका कारण भी स्वीकारना चाहिए। और ये तो सब प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं तो इनका कारण भी स्वीकारना चाहिए । वही अदृष्ट कर्ता ईश्वर ही इन सबका बनानेवाला कारणरूप में है। उसे ही जगत्कर्ता, सृष्टि का रचयिता इत्यादि शब्दों से कहते हैं । जैसे घडा-वस्त्र आदि कार्य हैं तो उनको बनानेवाला कुम्हार, बुननेवाला वणकर आदि कर्ता के रूप में हैं, वैसे ही पृथ्वी आदि कार्य को बनानेवाला ईश्वर है। कुम्हार घडा बना सकता है परन्तु वह पृथ्वी-पर्वतादि तो नहीं बना सकता । परन्तु ये पृथ्वी-पर्वतादि तो बनें, प्रत्यक्ष दिखाई दे रहे हैं, तो फिर इनका कर्ता कोई अदृष्ट होगा, पर होगा सही । वहीं सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी ईश्वर है। यह तो ईश्वरवादी का पक्ष हुआ परन्तु यहाँ प्रश्न यह है कि आप ईश्वर को पृथ्वी आदि का कर्ता मानते हैं । ठीक है, परन्तु वह ईश्वर शरीरधारी है कि मुक्तात्मा की तरह अशरीरी है ? जैसे कुम्हार सशरीरी है तो घडे बना सकता है । उसी तरह सशरीरी अर्थात् शरीरवाला ईश्वर हो तो ही पृथ्वी-पर्वतादि बना सकेगा। अशरीरी मुक्तात्मा शरीर के अभाव में कार्य कैसे करेगा? अच्छा अब आप कहेंगे कि ईश्वर सशरीरी है । सशरीरी होकर ही पृथ्वी आदि बनाने का काम करता है तो बताइये कि ईश्वर के शरीर की रचना किसने की? फिर वही बात आएगी। यदि ईश्वर ने ही अपने शरीर की रचना की ऐसा कहोगे तो पहले अशरीरी ईश्वर और वह शरीर की रचना कैसे करेगा? मुक्तात्मा जो १३० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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