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नख से शिख तक नस-नस पहचानती है । ना कैसे करें ? ठीक है कि संसार का संबंध है और जिन्दगी भर साथ रहना है इसलिए पत्नी पति को अच्छी तरह पहचानती हो यह संभव है । परन्तु क्या हम यही प्रश्न एक भक्त को पूछे कि भाई ! तुम जिस भगवान की वर्षों से भक्ति करते हो उस भगवान को पहचानते तो हो कि नहीं? भगवान का स्वरूप अच्छी तरह जानते हो कि नहीं? शायद पत्नी के उत्तर जितना सुन्दर दृढ़ विश्वास का उत्तर भक्त दे पायगा कि नहीं इसमें हम को शंका है । पत्नी पती को अच्छी तरह जानती है, पहचानती है परन्तु एक भक्त भगवान को अच्छी तरह नहीं पहचानता। ____जिसका जैसा स्वरूप है उसका वैसा स्वरूप न जानें, न पहचानें तो यह हमारा सम्यग् दर्शन नहीं होगा । या तो भगवान को पहचानते ही नहीं हैं और कई पहचानते भी हैं तो वे भगवान जैसे हैं, वैसे नहीं जानते, जो स्वरूप भगवान का हैं उस स्वरूप को नहीं जानते, उसमें भी विकृतियाँ खड़ी कर देते हैं । विकृत स्वरूप में पहचानते हैं । अतः हमें चाहिए कि हम दूसरों को हमारी दृष्टि जैसी है वैसे स्वरूप में न पहचानें । यह मिथ्यादर्शन हो जाएगा। भगवान जैसे हैं, जैसा शुद्ध स्वरूप उनका है, उन्हें हम वैसे ही शुद्ध स्वरूप में पहचानें ते. ही सही पहचान होगी । यही सम्यग् दर्शन कहलाएगा। हम बाजार में जाते हैं तो जो भी पीला हो वह सोना है ऐसा समझकर सोना नहीं खरीदते हैं । यदि खरीदते हैं तो हम ठगे जाएंगे। चूंकि तर्क पद्धति से ही सही न्याय नहीं लगाया है । सही न्याय भी देखें कि- जो सोना होता है वह जरूर पीला होता है, इसमें संदेह नहीं है परन्तु सभी पीले पदार्थ सोने के रूप में ही हैं ऐसा नियम नहीं है । अतः पीला देखकर सोना न समझें । सोने को जरूर पीला समझें । कई एक जैसे पीले रंग के पदार्थों में सोना भी पीला है । पीले-पीले रंग के समानदर्शी पदार्थों में सोना भी मिल गया है। रंग साम्यता में पदार्थ खो गया है । उसे ढूँढकर निकालने के लिए जरूर परीक्षक बुद्धि अपनानी पड़ेगी । परीक्षा करके खरीदने में ठंगे नहीं जाएंगे। कसोटी के पत्थर पर सोने की परीक्षा की जाती है । उसी तरह कष, छेद-भेद-तापादि भिन्न-भिन्न परीक्षा करके सोना खरीदा जाता है । हमारी लाखों रुपयों की संपत्ति व्यर्थ न चली जाय अतः सुवर्णपरीक्षा रत्नपरीक्षा आदि करते हैं । यहाँ परीक्षा करना लाभदायक है। .
न्याय तार्किक शिरोमणि पूज्य हरिभद्रसूरि महाराज भी भगवान की, धर्म की परीक्षा करके भगवान को, धर्म को, पहचानने के लिए कहते हैं। जिसकी हम जिन्दगी भर पूजा करें, उपासना करें, जीवन भर जिसकी भक्ति करें और उसे ही न पहचान पाएँ तो हमारी सारी भक्ति निष्फल चली जाएगी । “बिना विचारेजो करे सो पाछे पछताय" वाली कहावत चरितार्थ होती हुई दिखाई देगी।
संसार की विचित्रता के कारण की शोध
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