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________________ 3 एक गृहस्थ ने पारसमणि समझकर एक रत्न- मणि को खूब संभालकर रखा । जान से भी ज्यादा जिसका जतन किया। कोई देख न जाय, कोई चोरी कर उठा न जाय इस डर हमेशा सीने से लगाकर बांध रखा। इसलिए कि शायद भविष्य में जब भी कभी आर्थिक संकट आकर खड़ा होगा उस दिन इस पारसमणि से सोना बनाकर जीविका चला लेंगे । संभालते हुए ५०–६० वर्ष बीत गए । अर्थिक परिस्थिति ने पल्टा खाया। दो युवान बेटे मौत के मुँह में चले गए । आजीविका का आधार टूट गया। आयु वृद्धावस्था के पास पहुँच गई थी । घर में खाने पीने की समस्या खड़ी होने लगी थी । अतः पत्नी ने कहा कि अब तो वह पारसमणि निकालो, कुछ सोना बना लो, बाजार में बेचो, अनाज खरीद कर लाएं, जिससे आजीविका तो चले । पत्नी की बात पर गौर से सोचा। बात सही थी । वृद्ध ने अपनी पत्नी से कहा- तुम थोड़े लोहे के टुकड़े इकट्ठे कर लाओ। मैं पारसमणि निकालता हूँ । स्पर्श करके सोना बना लेंगे । ५०-६० साल से जान से भी ज्यादा जिसे संभालकर रखी थी वह पारसमणि उस वृद्ध ने अपने सीने पर बंधी कपड़े की पट्टी खोलकर निकाली । वृद्ध बेचारा बड़ा प्रसन्न था । हाँ, आखिर गरीब के लिए तो १-१ पैसा आशा की किरण है । आश्चर्य इस बात का था कि पारसमणि समझकर वर्षों से अपने पास संभालकर रखी, परन्तु कभी भी सोना बनाकर भी देखा नहीं था । चूंकि आज से ही यदि बनाने लग जायेंगे तो बेटे सोना देखकर प्रमादी बन जायेंगे, कोई भी कमाएगा नहीं । अतः जरूरत पड़ेगी तब बना लेंगे, इस हेतु से संभालकर रखी । आज सोना बनाने की परिस्थिति आ गई है ऐसा समझकर सोना बनाने घर के अन्दर के एक कमरे में बैठा । पत्नी लोहे के टुकड़े ले आई । घर बन्द करके अन्दर के कमरे में वृद्ध ने पारसमणि निकाली और लोहे के टुकड़े को स्पर्श किया । हाय ! अफसोस कि कुछ भी नहीं हुआ। सोना नहीं बना । वृद्ध हैरान हो गया । प्रारसमणि लोहे के टुकड़े पर रगड़ने लगा । खूब जोर से घिसने लगा। बेचारा पसीना-पसीना हो गया । " नाच न जाने आंगन टेढा" की बात पत्नी के सामने बनाने की सोची तो सही परन्तु पेट भरने के लिए जब कुछ भी नहीं है, खाने की समस्या है, वहाँ बहाना किसके सामने बनाऊँ? बेचारा वृद्ध सिर पटक कर रोने लगा, चिल्लाने लगा । अब शंका हुई की मैंने जिसे पारसमणि समझा था वह सचमुच पारसमणि है कि सामान्य पत्थर मात्र है ? पारसमणि होती तो सोना क्यों नहीं बनता है ? पारसमणि की सत्यता की पहचान ही लोहे को सोना बनाने में है। अब क्या करें ? पत्नी ने व्यंग किया— तो आपने ५०-६० वर्ष जान से भी ज्यादा संभालकर रखी तो क्या सीने पर पत्थर बांध कर रखा था । लोगों के सामने छिपाने के लिए कहते थे कि नहीं... नहीं सीने १२२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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