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________________ भाई को कहा चल गाड़ी में बैठ जा । मेरे साथ बंगले में ही रह जा । क्यों इस तरह भीख मांगता है ? दुनिया देखती है, मुझे शरमिंदा होना पड़ता है । बहुत कुछ कहा लेकिन भाग्य कहाँ घसीट ले जाते हैं ? कैसा विचित्र संसार ! दो भाईयों में भी समानता नहीं है । बड़ी भारी विषमता है । विचित्रता है। एक मां के चार बेटे भी समान स्वभाव के नहीं हैं । कोई पूर्व दिशा की बात करता है तो दूसरा पश्चिम की । कोई क्रोध की आग से घर को जलाता है तो कोई लोभवृत्ति से घर को लूटता है । कोई मान अभिमान से घर की इज्जत बिगाड़ता है । तो कोई मायावी वृत्ति से कपट का जाल रचता है । संसार सर्वत्र विचित्र सा दिखाई देता है । इतना ही नहीं युगल रूप में जन्मे हुए दो भाईयों के बीच में भी साम्यता नहीं होती है। क्या कारण है ? भव रोग का भय भव अर्थात् संसार, भव अर्थात् जन्म-मरण, भव अर्थात् संसार की भव परम्परा । देह रोग का भान तो सबको होता है । परन्तु भव रोग का ज्ञान किसी विरल को ही होता होगा । आधि-व्याधि-उपाधि में कई प्रकार के रोग बताए गए हैं। शारीरिक रोग एवं मानसिक रोग तो प्रसिद्ध ही हैं। सभी इनसे अच्छी तरह सुपरिचित हैं। शरीर में होने वाले रोग शारीरिक रोग हैं । पागलपन आदि मानसिक रोग हैं । उन्माद आदि कामासक्ति के रोग हैं । ये सभी साध्य - असाध्य दोनों कक्षा के हैं । कई रोग जो साध्य हैं वे जल्दी ठीक हो जाते हैं । लेकिन जीव लेकर ही जानेवाले असाध्य रोगों की सूचि भी आज छोटी नहीं है । शरीर तंत्र में होनेवाले शारीरिक रोगों से आज सभी संतप्त हैं। उससे बचने के लिए सैकड़ों उपाय ढूंढ निकाले हैं । कई प्रकार के इलाज कराए जाते हैं । लेकिन इसी शरीर के भीतर रहनेवाली जो चेतना शक्ति है जिसे आत्मा कहते हैं जिसके आधार पर ही यह जीवन चल रहा है; आत्मा चली जाय तो इस मृत शरीर की कोई किमत नहीं है। आग में जलाकर भस्म कर देते हैं । अतः इनका अमूल्य कीमती तत्त्व आत्मा जो केंद्र में है उसके बारे में क्यों क़भी कोई सोचता तक नहीं है । जैसे शरीर में रोग उत्पन्न हो सकते हैं वैसे ही आत्मा में भी रोग हो सकते हैं । आत्मा को भी रोग लागू हुआ है । वह है भव रोग | भव रोग अर्थात् सतत् जन्म-मरण धारण करते रहना । एक जन्म से दूसरे जन्म में, एक भव से दूसरे भव में, एक गति से दूसरी गति में सतत् परिभ्रमण चलता ही रहता है । इसका नाम है भव रोग । यह शरीर को नहीं आत्मा को लागू होता है । आत्मा इस रोग से पीड़ित है । जिस तरह शरीर के शारीरिक रोगों के पीछे खान-पान आदि की अनियमितता संसार की विचित्रता के कारण की शोध ११५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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