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वे वर्ष के चिकपेठ के चातुर्मास के समय नगरथपेठ – हस्ति बिल्डर्स के विशाल प्रवचन मण्डप में - चातुर्मासिक शिबिर में भी करीब २००० युवक- युवतियों ने लाभ उठाया था।
श्री अक्कीपेठ संघ परिसर में भी हमने इस वर्ष चातुर्मासिक १६ रविवार की “युवा उत्कर्ष शिक्षण शिबिर" का विशिष्ट आयोजन किया था । जिसमें ५०० से६०० की संख्या में युवक-युवतियों ने विशेष लाभ लिया था। प्रति रविवार को ही चलती इस शिबिर में पूज्यश्री जैन जीवविज्ञान, जैन कर्मविज्ञान, जैन मानसशास्त्र, जैन इतिहास, जैन भूगोल, जेन खगोलशास्त्र, जैन दर्शनशास्त्र, जैन ब्रह्माण्डशास्त्र, जैन तत्त्वज्ञानादि के अनेक विषयों पर शिक्षक की तरह ब्लेकबोर्ड पर चित्रों के साथ सचित्र पद्धति से समझाने पर युवको की समझ में स्पष्ट उतर जाता था । कई सचित्र रंगीन चार्टी के द्वारा दिया जाता ज्ञान बड़ी अच्छी सरलता से सबकी समझ में आ जाता था।
दि. २७ जुलाई १९९४ रविवार के शुभ दिन प्रारम्भ हुई इस युवा शिबिर के आयोजित उद्घाटन समारंभ में उद्घाटन कर्ता श्रेष्ठिवर्य श्रीमान शा. ने अपने करकमलों से ज्ञानदीप प्रज्वलित करते हुए कहा कि- युवा पीढि जो आज एक ऐसी विपरीत दिशा में ढह चुकी है उसे पुनः उठाने के लिए ऐसी शिबिरों की अत्यन्त आवश्यकता है । पूज्यश्री का यह भगीरथ प्रयास कामयाब सिद्ध हो ऐसी मंगल कामना उद्घाटन समारंभ में अतिथि विशेष के रूप में पधारे हए श्रीमान आदि ने व्यक्त की। श्री संघ ने सभी अतिथि महान भावां का माल्यार्पण एवं शालार्पण से भव्य स्वागत-सन्मान किया। नियमित रूप से शिबिर चलती रही। अनेक प्रकार के आयोजन शिबिरों में होते रहे। अन्य अनेक जिज्ञाम् भी अपनी ज्ञान की पिपासा बुझाते रहे।
शनिवारीय बाल संस्कार शिबिर
__ युवा शिबिर की तरह ही प्रत्येक शनिवार को बाल संस्कार शिबिर का भी आयोजन विशेष रूप से श्री संघने पूज्यश्री की निश्रा में किया था । करीब ७०० के आसपास बालक बालिकाओं ने इस शिबिर में लाभ लिया। पूज्यश्री के शिष्य मुनि श्री हेमन्तविजयजी महाराज ने सूत्रों के अर्थ चित्रों के आयोजन तथा कथा के माध्यम से बालकों में संस्कारों का सिंचन किया । ७०० बालक-बालिकाएँ जब एक साथ सामायिक लेकर अभ्यास करते थे तब बडा ही सुहावना मनोहर दृश्य लगता था। श्री संघ में अनेक उदार दान दाताओं ने प्रत्येक शनिवार को विविध वस्तुओं की प्रभावनाएँ करके बाल मानस का उत्साह बढाया । तथा परीक्षादि लेकर विशेष बडे पारितोषिकों से भी सन्मानित किये।