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असीम कृपा से अक्कीपेठ परिसर के वतनी " मेडिसेल्स" के व्यापारी तेरापंथी भाई ने सांप्रदायिक भेदभाव से ऊपर उठकर सांप्रदायिक एकता बढाने की दृष्टी से अपना विशाल मकान पूज्यश्री के चातुर्मास निवासार्थ सादर अर्पण किया । वे भाग्यशाली थे श्रीमान शा. कजोडीमलजी
इस भवन पर पूज्यश्री के गुरुदेव के नाम के साथ नामकरण करके “सुबोध भवन” म से प्रसिद्धि प्राप्त हुई । २ विशाल हॉल में पूज्यश्री आदि मुनि मण्डल की ४ मास स्थिरता रही।
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चातुर्मासिक सूत्र वांचन
आषाढ सुदि ५ से चातुर्मासिक चतुर्दशी तक पूज्यश्री ने नमस्कार महामन्त्र के रहस्यों को समझाते हुए प्रतिदिन प्रवचन दिये । चौमासी चौदश के शुभ दिन चातुर्मासिक सूत्र वांचन के चढ़ावे बोले गए । ४५ आगम शास्त्रों में जो ११ अंगसूत्र शास्त्र हैं उनमें से ११ वाँ अंगसूत्र “श्री विपाक सूत्र” शास्त्र आगम वहोराने का चढावा श्रेष्ठिवर्य श्रीमान शा. लिया । महामहोपाध्यायजी श्री यशोविजयजी म.सा. विरचित “ श्री अध्यात्मसार ग्रन्थ” वहोराने का चढ़ावा श्रेष्ठिवर्य श्रीमान शा. परिवार ने लिया । और तीसरा ग्रन्थ " श्री गुणस्थानक्रमारोह” जो पू. रत्नशेखरसूरि म. विरचित है और प्रत्येक रविवार की • प्रवचनमाला में पढा जानेवाला है उस ग्रन्थ को वहोराने का लाभ श्रेष्ठीवर्य श्रीमान शा. परिवार ने लिया । श्रावण वदि २ के शुभ दिन से सभी सूत्रों का वांचन प्रारंभ हुआ । पूज्यश्री अपनी एक अनोखी विशिष्ट शैली में और ब्लैक बोर्डपर सचित्र समझाने की पद्धति
कर्मशास्त्र, गुणस्थान के तथा आध्यात्मिक शास्त्रों के अनोखे रहस्य समझाते हुए प्रतिदिन नियमित प्रवचन फरमाते थे । चारों महिने पूज्यश्री की अमृत वाणी की वर्षा निरन्तर बरसती ही रही । बेंगलोर वासियों की व्याख्यान श्रवण की अतृप्त तृष्णा को पूज्यश्री अच्छी तरह समझकर संतुष्ट करने का भरसक प्रयत्न करते रहे । व्याख्यान रसिक जनता में अन्य सम्प्रदायों के भाग्यशाली भी काफी संख्या में शरीक होते थे । अनेक जिज्ञासु काफी दूर- सुदूर से आतुरता पूर्वक दौडते हुए आते थे और लाभ लेते थे । पूज्यश्री भी निरन्तर नियमित समय पर प्रवचन फरमाते थे I
शिबिरों का अनोखा आयोजन
पू. पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी म.सा. की ख्याति वैसे भी युवा शिबिरवाले महाराज के रूप में फैल चुकी है । और बात भी सही है — कई वर्षों से अनेक आध्यात्मिक ज्ञान-ध्यान की शिबिरों का आयोजन पूज्यश्री की निश्रा में होता ही रहा है । वि. सं. २०४८
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