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________________ रोड, अक्कीपेठ मेन रोड आदि बेंगलोर के मुख्य राजमार्गों पर स्वागत यात्रा प्रदक्षिणा देते हए विशाल धर्म-प्रेम-प्रवचन मण्डप में धर्मसभा के रूप में परिवर्तित हुई। __ कर्नाटक राज्य के मंत्री श्रीमान पेरिकल मल्लप्पाजी ने पूज्यश्री को बेंगलोर शहर में चातुर्मासार्थ आगमन प्रसंग पर भव्य स्वागत अपने भाषण में किया । श्रीमान पी. सी. मानव जैसे विद्वान ने पधारकर पूज्यश्री का अभिवादन करते हुए सत्संग की महिमा दर्शायी । श्रीमान ज्ञानराजजी ने अपने वक्तव्य में विद्वान साधुसंतो की आवश्यकता पर विशेष भार दिया। चिकपेठ के अध्यक्ष श्रीमान लक्ष्मीचंदजी कोठारी ने पूज्यश्री की विद्वत्ता का विशेष परिचय दिया । अन्य अनेक विद्वानों ने चातुर्मासार्थ पधारे हुए पूज्य पंन्यासजी म.सा. की बेंगलोर शहर में एवं दक्षिण भारत में अनेक गुनी आवश्यकता है इस पर ज्यादा भार दिया। श्री सुरेन्द्रभाई शाह ने सभा का संचालन किया। पू. मुनि प्रवर श्री मुक्तिचन्द्र-मुनिचन्द्रविजयजी म.सा. भी प्रवेश यात्रा में पधारे और उन्होंने अपने व्याख्यान में पूज्यश्री की विद्वत्ता की काफी अच्छी प्रशंसा की। अन्त में पू. पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी म.सा. ने अपने प्रवचन में चातुर्मास की महिमा समझाई। वर्तमान काल में धर्म की कितनी ज्यादा एवं किस संदर्भ में आवश्यकता है यह भी समझाया । पूज्यश्री की प्रवचन शैली का तो पूछना ही क्या? तात्त्विक शास्त्रीय विषयों को भी लोकभोग्य सरस–सरल शैली में समझाते हैं, और लोगों को तत्त्व के विषयों का मानों अभ्यास कराते हो ऐसा प्रवचन फरमाते हैं । एक विशेष सुधारणा यह रही कि.... प्रभावना की पद्धति में परिवर्तन करके उतनी राशी या दुगुनी राशी साधर्मिक बंधुओं की भक्ति में दिलाते थे। आश्चर्य तो यह था कि बुधवार का चालु दिन होते हुए भी दोपहर को दो बजे तक उत्सुक जनता बैठी रही। पूरे चातुर्मास काल तक जहाँ प्रवचन की धारा बहनेवाली थी... ऐसे विशाल प्रांगण के लिए बेंगलोर के एक.कन्नडभाई भास्करभाई ने अपनी विशाल जमीन चार–पाँच महीने तक प्रवचन के लिए सप्रेम अर्पण की । इस विशाल जमीन पर बनाए गए विशाल प्रवचन मण्डप का नामकरण पूज्यश्री के गुरुदेव एवं दादा गुरुदेव के नाम के साथ “धर्म-प्रेम प्रवचन मण्डप" रखा गया। इसके लिए नामकरण का चढावा बोला गया। राजलक्ष्मी पेपर्स सुलतान पेट वाले श्रीमान शा. मोहनलालजी सालेचा परिवार ने यह लाभ लिया। और उनके नामकरण के सुन्दर बैनरों से मण्डप सुशोभित किया गया। सुबोध भवन __ अक्कीपेठ में नए-नए संघ की स्थापना से श्रीगणेश हुआ था । अतः संघ के पास गुरुदेवों को ठहराने के लिए भी उपाश्रय की व्यवस्था नहीं थी। परन्तु शासन देव की
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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