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________________ सचित्र जाहिर प्रवचनमाला पूज्य विद्वद्वर्य पंन्यास प्रवर श्री अरुणविजयजी म.सा. की विद्वत्ता का लाभ हजारों जिज्ञासुओं को प्राप्त हो इसके लिए हमारे श्री संघ ने प्रत्येक रविवार को सुबह ९.३० से ११.०० की “चातुर्मासिक रविवारीय सचित्र जाहिर प्रवचनमाला” का विशेष आयोजन किया। १४ गुणस्थानों के विषय को आधार बनाकर “आध्यात्मिक विकास यात्रा" विषयक प्रवचन श्रेणि चलाई गई । जो चातुर्मास के चारों महीनों के १६ रविवारों तक चली । इस प्रवचनमाला में पूज्यश्री ने ज्ञान के निचोडात्मक सारभूत तत्त्वों को रोचक शैली में सरलता से समझाया । कर्म शास्त्र के गहन विषयों को लोकभोग्य बनाकर समझाने की पूज्यश्री की यह विशेषता सचमुच ही प्रशंसनीय है। और इसमें भी सबसे ज्यादा तो ब्लैकबोर्ड पर चित्रों के साथ जब समझाते हैं तब तो श्रोतावर्ग के चेहरे सच्ची समझ पाकर आनन्द से खिल उठते हैं। श्रोतावर्ग मन्त्रमुग्धसा बन जाता था। अनेकों के मुंहसे हम ऐसा सुनते थे कि... सचमुच व्याख्यान तो ऐसे ज्ञानवर्धक ही होने चाहिए । १४ गुणस्थान के ऐसे- जटिल-गहन और शास्त्रीय विषयों का ज्ञान सरलता से समझाने के कारण ही श्रोतावर्ग कुछ ज्ञान सम्पादन कर पाएगा। प्रवचनों के माध्यम से श्रोताओं का सम्यग्ज्ञान बढाकर युवकों के जीवन में परिवर्तन लाने के पूज्यश्री के इस पुरुषार्थ का हम उपकार मानते हुए भूरि-भूरि अनुमोदना करते हैं। "आध्यत्मिक विकास यात्रा”– पुस्तक प्रकाशन योजना. श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वे.मू.संघ–अक्कीपेठ–विस्तार में सर्वप्रथमबार एक सुंदर चातुर्मास होने जा रहा था, और वह भी एक विद्वान वक्ता पंन्यास श्री अरुणविजयजी म.सा. जैसे सिद्धहस्त प्रवचनकार एवं लेखक महाराज का चातुर्मास हो रहा था । पूज्यश्री कलम के भी अच्छे जादूगर है । प्रवचन कला में कुशल होने के नाते प्रवचनों के माध्यम से जनता की तत्त्व जिज्ञासा संतुष्ट करते हैं, और फिर उसी विषय को अपनी कलम के जादु से पेपर पर उतारते थे। हमारे श्री संघ में चातुर्मास के १६ रविवारों तक चली १४ गुणस्थान विषयक “आध्यात्मिक विकास यात्रा” की प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित करने की योजना की। श्री संघ ने ज्ञानखाते में से एक हजार प्रति का प्रकाशन कराया। कुछ दान दाताओं ने मिलकर १००० प्रति का प्रकाशन कराया। तथा इसी तरह कलकत्ता निवासी श्रेष्ठीवर्य श्रीमान शा. भंवरलालजी बैद परिवार (वकील सा) की तरफ से ५०० प्रति, एवं बम्बई में
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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