________________
I
अवर्णी-अरंगी-अगंधी - अरसी - अस्पर्शी आत्मा है । रूप-रंग पुद्गल के होते हैं। आत्मा के नहीं । अतः आत्मा अरूपी अरंगी वर्णरहित है । वर्ण-गंध-रस - स्पर्शादि इन्द्रियग्राह्य है । और आत्मा के वर्णादि है ही नहीं अतः आत्मा चक्षु -आदि इन्द्रियग्राह्य नहीं है। इसीलिए आँख से देखा नहीं जाता है । आत्मा न तो पुरुष है और न हीं स्त्री-नपुंसक है । यह लिंग रहित है । आत्मा की कोई जाती आदि भी नहीं । अशरीरी है । कर्मवश उसे देह - लिंग, जाती आदि धारण करनी पडती है । न ही कोई आकार-प्रकार है अतः आत्मा निरंजन–निराकार है । अमूर्त है ।
६) अगुरुलघु - गुरु का अर्थ है भारी - बडा । लघु का अर्थ है छोटा ... हल्का । वजन की दृष्टि से आत्मा न तो भारी है और न ही हल्की है। अतः वजनरहित है । इसी तरह न तो बड़ी है न ही छोटी है। छोटे-बडे का व्यवहार भी कर्माधीन है । उच्च-नीच का भी व्यवहार कर्माधीन है । आत्मा के लिए यह व्यवहार नहीं है । अतः आत्मा ऊंच-नीच भी नहीं है । अतः अगुरु-लघु गुणसम्पन्न चेतन द्रव्य है ।
1
७) अनन्त (अव्याबाध) सुख - व्याबाध अर्थात् पराभव होना । अवरोध होना । अव्याबाध अर्थात् किसी से पराभव भी नहीं और किसी प्रकार के अवरोध के बिना भी आत्मा स्वसुख का अनुभव करती है । आत्मा का सुख इन्द्रियजन्यभोगजन्य – पदार्थजन्य - विषय - वासनाजन्य भी नहीं है । पराधीन या परवश भी नहीं है । स्वाधीन-स्ववश,सुख है । अतः वह मात्र दुःखाभावरूप सुख नहीं है । वह अनन्त आनन्द रूप है । सच्चिदानन्दरूप आनन्दघनरूप है । ज्ञानानन्दरूप सुख अनन्त है । अव्याबाध
1
1
८) अक्षय स्थिति - क्षय अर्थात् - नष्ट होने वाला - विनाशी - नाशवंत । आत्मा की स्थिति अविनाशी है- अक्षय है । अतः अनन्त काल बीतने के बाद भी आत्मा स्व स्वरूप में ऐसी ही रहती है । अतः अजर-अमर है । जन्म-मरण रहित है । कर्माधीन स्थिति में जन्म-मरणादि करना पडता है । अकाल अर्थात काल के भी परे आत्मा है । कालाधीन आत्मा नहीं है । आत्मा के आधीन काल है। किसी भी काल की आत्मा पर कोई असर नहीं होती है । अतः आत्मा नित्य- शाश्वत - अविनाशी है । सदाकाल अपने स्वरूप में एक जैसी ही रहती है । अनादि - अनन्त इसकी स्थिती है ।
इस तरह इन मुख्य आठ गुणों वाला आत्मा चेतन द्रव्य है । चैतन्यस्वरूप है | चेतना गुणवान है । शरीर आत्मा नहीं है और आत्मा शरीर नहीं है । आत्मा संसार में रहने के
सृष्टिस्वरूपमीमांसा
१०३