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सुखी-दुःखी बनता है । इस विशेषण से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि... सुख-दुःख का देनेवाला और भोगनेवाला अलग-अलग नहीं है । एक ही है । वह है चेतनात्मा। सुख दुःख न तो ईश्वरदत्त है और न ही किसी अन्य द्वारा प्रदत्त है । लेकिन चेतनात्मा द्वारा ही उपार्जित है । और कालान्तर में-जन्मान्तर में जिन प्रकार के शुभाशुभ कर्म किये हैं उनका फल भी कालान्तर में-जन्मान्तर में भुगतनेवाला भी वही चेतनात्मा ही है।
कोई दर्शन कर्ता – मानने में भूल कर रहा है तो कोई दर्शन भोक्ता मानने में भूल कर रहा है। कोई कहता है कि जीव कर्म का कर्ता नहीं है । ईश्वर ही कर्ता है । और कोई दर्शन कहता है कि- कर्म करने के बाद भी जीव को फल भुगतना ही नहीं पडता है । वह भोक्ता नहीं है । कोई दर्शन कहता है कि कर्म का फल भी ईश्वर ही देता है । इत्यादि मान्यताएँ भ्रान्तिमूलक हैं-भ्रमणाकारक हैं । अतः इनका निवारण यहाँ सूत्रकार ने सूत्र में कर्ता - साक्षात् भोक्ता विशेषण देकर किया है । सांख्य दर्शन ने तो यहाँ तक कह दिया कि"अकर्ता निर्गुणो भोक्ता" कर्ता न होते हुए भी- कुछ भी न करते हुए भी और निर्गुण होते हुए भी वह भोक्ता है । कर्म के फल- सुख-दुःख का भोक्ता है । बिना किये हुए भी भोक्ता कहना कितनी बडी विसंगति बताई है। अतः जो स्वयं कर्ता है वही भुगतता भी है । मैं करूँ और अन्य भुगतें यह संभव नहीं है।
५) स्वदेह परिमाण-चेतनात्मा स्वशरीर में ही रहती है। अतः शरीर के बाहर कहीं आत्मा नहीं रहती है । चेतनात्मा स्व-स्व कर्मानुसार जब जिस गति–जाती में जाकर जन्म धारण करती है और जो शरीर बनाती है उसी शरीर में वह रहती है। शरीर छोटा है। तो छोटे शरीर में व्याप्त होकर रहती है और यदि शरीर बडा हो तो बडे शरीर में व्याप्त होकर रहती है। ___ जैसे एक डिब्बे में एक बल्ब को लगाया जाय और बटन चालू कर के प्रकाशित किया जाय तो उसका प्रकाश उस डिब्बे में ही व्याप्त होकर रहेगा। प्रकाश बाहर नहीं जाएगा । डिब्बा बडा हो तो बडे में, और डिब्बा छोटा हो तो छोटे में प्रकाश व्याप्त रहेगा। और यदि बल्ब को डिब्बे से भी बडी पेटी में रखें तो प्रकाश पूरी पेटी में व्याप्त रहेगा। और यदि उसी बल्ब को एक कमरे में लगाएँ तो प्रकाश पूरे कमरे में व्याप्त रहेगा। और यदि उसी बल्ब को एक बडे हॉल मे लगाएँ तो प्रकाश उतने बडे विस्तार में फैलकर रहेगा। ठीक इसी तरह चेतनात्मा भी प्रकाशपुंज की तरह है । अतः वह भी... छोटे से छोटे शरीर अमीबा में भी रहेगा। सूक्ष्मतम निगोद में भी रहेगा।... बडे होते होते ... चींटी में, मकोडे में, मक्खी में, भँवरे में, तीड में सर्वत्र जितना शरीर बडा मिलता जाएगा उतने में व्याप्त
आध्यात्मिक विकास यात्रा