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________________ ही समय होना चाहिए... लेकिन संसार में वैसा होता नहीं है। यह प्रत्यक्ष प्रमाण विरुद्ध बात है । अतः सभी-अनन्त आत्माएँ स्वतंत्र हैं । सबका अस्तित्व अलग-अलग स्वतंत्र है। यह आत्मा असंख्य प्रदेशी अखण्ड द्रव्य स्वतंत्र द्रव्य है। ___जीवो अणाइ अणिधणो, अविणासी, धुओ निच्चं" - भगवतीसूत्र आगम में गौतम को समझाते हुए श्री वीर प्रभु कह रहे हैं— हे गौतम ! आत्मा अनादि है । अनिधन अर्थात् मृत्यु रहित अमर है । नाश न पानेवाला अविनाशी है । अतः अजर-अमर है । सदा ध्रुव-नित्य-शाश्वत है । अतः अछेद्य अभेद्य, अदाह्य, अकाट्य, अविभाज्य ऐसा चेतनात्म द्रव्य है । यह किसी भी छेदन क्रिया से छेदा नहीं जाता है । छेदन-भेदन संभव नहीं है। भेदनक्रिया भी नहीं होती है। अतः अभेद्य कहा गया है। अदाह्य अर्थात् दाह-ज्वलनशील भी नहीं है । किसी भी प्रकार की अग्नि आदि से उसका दहन नहीं होता है। आत्मा जलकर नष्ट नहीं होती है । अतः अदाह्य कहा गया है। अकाट्य–अर्थात् चाकु-तलवार से काटी भी नहीं जा सकती है। अतः अकाट्य विशेषण विभाजन-दो टुकडे नहीं हो सकते वैसा यह चेतन द्रव्य है । यद्यपि एक परमाणु में भी इस प्रकारकी विशेषताएँ पडी है, इतने अंश में परमाणु भी आत्म सादृश्यता को इन विशेषणों से प्राप्त करता है । परन्तु ज्ञानादि का अभाव होने से वह चेतनरूप नहीं गिना जाता है। तर्कग्रन्थों में आत्मा का स्वरूप वाद विजेता पू. वादिदेव सूरि महाराज– “प्रमाणनयतत्त्वालोक" नामक तर्क ग्रन्थ जो जैन दर्शन का एक सुंदर दार्शनिक ग्रन्थ है.... खजाना है उसमें कहते हैं कि १) चैतन्यस्वरूपः, २) परिणामी, ३) कर्ता, ४) साक्षाद्भोक्ता, ५) स्वदेहपरिमाणः, ६) प्रतिक्षेत्रं भिन्नः, ७) पौद्गलिकादृष्टवांश्च अयम्" ७ वे प्रकाश के ५६ वे सूत्र में कहते हैं कि- यह ...रूप आत्मा चैतन्य स्वरूपी है । निरंतर परिणामवाला अर्थात् संसार में सतत परिणमन होनेवाला है। कर्म का कर्ता है। अपने ही सुख दुःख का स्वयं कर्ता है। और उस कर्म को भुगतनेवाला भोक्ता भी स्वयं ही है। यह संसारी अवस्था में देहधारी है । और प्रत्येक शरीर में भिन्न भिन्न स्वतंत्र रूप से रहनेवाला है । तथा पौद्गलिक कर्मवाला वह आत्मा है। इन सात विशेषणों से आत्मा का स्वरूप समझाया गया है। आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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