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________________ दूसरी दृष्टि से भी विचार करें तो... ऐसा लगता है कि... यदि ईश्वर इतना ही समर्थ थे तो उन्हें वैसे ज्ञान–दर्शन तथा सुख-दुःख की संवेदना के अनुभावक परमाणुओं को स्वतंत्र रूप से बनाने चाहिए थे। पहले वैसे परमाणु बना लिए होते तो ईश्वर के लिए चेतनात्मा को बनाना आसान होता । लेकिन समस्त ब्रह्माण्ड में वैसे परमाणुओं का अस्तित्व था भी नहीं और वर्तमान में है भी नहीं । इससे एक बात और भी सिद्ध होती है कि .... परमाणुओं का निर्माता भी ईश्वर नहीं है । अगर परमाणुओं का निर्माता ईश्वर होता तो सब प्रकार के अलग-अलग परमाणु बनाता... जिससे आगे उन अलग-अलग परमाणुओं से द्रव्यों को बनाना आसान होता । किसी परमाणु में ज्ञान - दर्शनादि गुणों को भरता । किसी परमाणुओं में सुख - दुःख की संवेदना की अनुभावकता को भरता । इस तरह अलग-अलग प्रकार के परमाणुओं की रचना करते और उनके संयोजनों से, संमिश्रण से वैसे चेतनादि पदार्थों की निर्मिती ईश्वर आसानी से कर सकता। लेकिन यहाँ ईश्वर की असमर्थता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है । वैसे परमाणु भी ईश्वर बना नहीं पाया तो फिर वैसे चेतनात्माओं को तो कहाँ से बना पाएगा ? I क्या आत्मा रासायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न है ? Chemistry रसायन शास्त्र ने इस शरीर को मुख्य तीन गेसों का पिण्ड माना है । इसमें Oxygen, Hydrogen और Carbon ये तीन गेसें प्रमुख हैं । आत्मा और शरीर दोनों अलग स्वतंत्र पदार्थ हैं। शरीर की रचना में ये तीनों गेसें काम आ सकती हैं। लेकिन चेतनात्मा के स्वरूप में इन तीनों के संमिश्रण से उत्पत्ति संभव नहीं है । यदि इन तीनों का संमिश्रण किया जाय तो क्या उसमें ज्ञान- - दर्शन की चेतना आएगी ? क्या सुख-दुःख की संवेदनाओं की अनुभावकता आएगी ? संभव ही नहीं है । अतः आत्मा रासायनिक प्रक्रिया द्वारा किसी भी प्रकार के रसायनों से उत्पन्न है ही नहीं होता ही नहीं है । चार्वाक दर्शनवाले नास्तिक मतानुयायी भी चेतनात्मा की मदशक्ती की तरह उत्पत्ति मानते हैं। जैसे मदिरा बनती है । मदिरा जिन पदार्थों को सडाने से बनती है उसके बाद उसके सेवन करने से व्यक्ती में जिस प्रकार की मद शक्ती आती है उसी तरह किन्हीं पदार्थों के संमिश्रण से ज्ञानादि शक्ती आती है ऐसा उनका मानना है । उस प्रकार के आधारभूत घटक द्रव्य कौनसे हैं ? जिनके संमिश्रण से ऐसी ज्ञानादि शक्ती आती है ? मदिरा के लिए द्राक्ष, गुड के फूल आदि कई द्रव्य हैं । जिनका संमिश्रण करके उन्हें उबाला जाय, उसमें नौसागर आदि डाले जाएँ ... फिर उसे खूब लम्बे काल तक सडाया जाय... फिर पीने से पीनेवालों के दिमाग पर .. . बुद्धि पर वह सड़ी हुई शराब असर करती है । उसे मद शक्ती आध्यात्मिक विकास यात्रा ९०
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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