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अब बचा सिर्फ एक पुद्गल - परमाणु द्रव्य ? पुद्गल के तो वर्ण- - गन्ध-रस - स्पर्श गुण हैं । यदि पुद्गल–परमाणु में से कोई भी बनेगा तो उसमें भी उनके गुणों का संक्रमण होगा । अतः पुद्गल - परमाणुओं से बना हुआ द्रव्य भी वर्ण-गंध-रस - स्पर्शादि गुणवाला ही बनेगा। लेकिन जीवात्मा सर्वथा वर्ण-गंध-रस - - स्पर्श गुण रहित है । अतः आत्मा अवर्णी, रूप-रंग रहित अरूपी है। किसी भी प्रकार का रूप-रंग आत्मा में न होने से चेतनात्मा अरूपी है । अवर्णी है। रूप-रंग होता तो आँखों से स्पष्ट दिखाई देती । लेकिन आत्मा किसी को भी आँखों से दिखाई नहीं दी । और जो दिखाई देता है वह सिर्फ यह जड शरीर ही दिखाई देता है । शरीर पुद्गल - परमाणुओं का बना हुआ पिण्ड है । अतः यह शरीर वर्ण-गंध-रस - स्पर्श वाला है । परन्तु चेतनात्मा तो शरीर से सर्वथा भिन्न है । शरीर चेतनात्मा नहीं है और चेतनात्मा शरीर नहीं है । दोनों अपने अपने गुणधर्मों के कारण सर्वथा स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं ।
चेतनात्मा ज्ञान–दर्शनमय सुख-दुःख की संवेदना का अनुभव करनेवाला अजीव से सर्वथा भिन्न स्वतंत्र ही द्रव्य है। ऐसे ज्ञान - दर्शनादि गुण तथा सुख-दुःख की संवेदना का अनुभव करने का गुण अजीव - पुद्गल - परमाणुओं में सर्वथा नहीं है । अतः परमाणुओं के संमिश्रण मात्र से चेतन की उत्पत्ति कैसे माने ? ऐसे किन परमाणुओं के संमिश्रण से चेतनात्मा बनाई जाय ? क्या ऐसे कोई अलग से विशेष परमाणु हैं ? जिनमें ज्ञानादि गुण हैं ? नहीं, ऐसा एक भी परमाणु नहीं है, जिनमें ज्ञान - दर्शनादि हो । यदि होता तो वह आत्मा ही कहलाता। फिर अजीव तत्त्व का अलग से स्वतंत्र अस्तित्व कहाँ से आता ? पुद्गल - परमाणु अपने वर्ण-गंध-रस - स्पर्शादि विशिष्ट गुणों से ही स्वतंत्र अस्तित्ववाला अलग द्रव्य है। ठीक उसी तरह चेतनात्मा भी अपने ज्ञानादि विशिष्ट गुणधर्मों के कारण अलग स्वतंत्र द्रव्य है । अतः जीव से अजीव बना या अजीव से जीव बनता है ऐसा संभव ही नहीं होता है । अतः इस प्रकार की भाषा का व्यवहार ही उचित नहीं है ।
अब जब परमाणुओं में ज्ञान - दर्शनादि गुणों का अस्तित्व ही नहीं है और वैसे कोई परमाणु ही जगत में नहीं है तो फिर ईश्वर भी चेतनात्माओं को परमाणुओं के संमिश्रण से कैसे बनाएगा ? आप कहेंगे कि असंभव को भी संभव करने का सामर्थ्य ईश्वर में है । ऐसे सामर्थ्यो से वह ईश्वर कहलाता है । ठीक है । लेकिन सामर्थ्य को भी संभव करने के लिए कुछ तो आधार चाहिए कि नहीं ? अगर संसार में वैसे परमाणु ही नहीं हैं तो फिर समर्थ होते हुए भी ईश्वर क्या कर सकेंगे ?
सृष्टिस्वरूपमीमांसा
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