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निर्मित नहीं हैं । ईश्वर बना ही नहीं सकता है । ईश्वर के बनाने की कोई प्रक्रिया किसी भी तरह सिद्ध होती ही नहीं है... तो फिर निरर्थक ईश्वर पर इस जीव को निर्माण करने आरोप क्यों लगाया जाता है ?
चेतनात्मा एक अरूपी अमूर्त द्रव्य है । यह असंख्य प्रदेशी गुणवान् द्रव्य 1 ज्ञान- दर्शनादि इसके गुण हैं । इनमें ज्ञानादि गुणमय चेतनात्मा है । इसको कैसे बनाया जाय ? ऐसे कौन से घटक द्रव्य हैं या परमाणु आदि पदार्थ हैं जिनमें ज्ञान - दर्शनात्मक चेतना पाई जाती हो ? यदि किसी परमाणु आदि घटक द्रव्यों में ही ज्ञान - दर्शनात्मक चेतना न पाई जाती हो तो फिर उनके संमिश्रण से बनाए गए पदार्थ - आत्मा में वह ज्ञान-दर्शनात्मक चेतना कैसे आएगी ? जिन घटक द्रव्यों में जिस प्रकार के गुण होंगे उसी प्रकार के गुण उससे बने हुए पदार्थ में भी आएँगे । जैसे दूध में घी, तिल में तेल है तो ही वह उसमें से आता- बनता है । जिस तरह घी का आधार दूध एक घटक द्रव्य है प्रक्रिया के प्रयोग से दूध में से घी निकलता है - प्राप्त होता है । उसी तरह तिल में तेल है अतः तिल में से तेल प्राप्त हो सकता है । परन्तु पानी में से घी निकला नहीं है और रेती में से तेल बना नहीं है ।
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ठीक इसी तरह चेतनात्मा किसी ऐसे घटक द्रव्यों में से बन ही नहीं सकती है । क्योंकि ऐसी चेतना–ज्ञान–दर्शनादि के गुणवाले आत्मभिन्न कोई द्रव्य जगत में है ही नहीं । यदि आप ये कहें कि परमाणुओं के संमिश्रण में से चेतनात्मा बनायी जा सकती है तो यह भी बात सर्वथा गलत सिद्ध होती है । क्योंकि संसार में मूलभूत द्रव्य के रूप में जीव और अजीव इन दो पदार्थों का ही अस्तित्व है । ये दोनों द्रव्य अपने अपने गुणधर्मों के कारण सर्वथा भिन्न हैं । जीव में जो ज्ञान - दर्शनादि सुख - दुःख संवेदनादि जो गुणधर्म हैं वे जगत के किसी परमाणु में है ही नहीं । ऐसे जगत में कोई परमाणु ही नहीं है । तो फिर किन परमाणुओं के संमिश्रण से चेतनात्मा द्रव्य बनाया जाय ? संभव ही नहीं है । अतः चेतनात्मा द्रव्य बनाया जाता ही नहीं है । उत्पन्न ही नहीं होता है ।
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अब हारकर भी यदि आप ऐसा कहो कि सर्व शक्तिमान समर्थ ईश्वर के लिए सबकुछ बनाना संभव है । कुछ भी असंभव नहीं है । तो इन महिमा सूचक शब्दों से चेतनात्मा पदार्थ की उत्पत्ति हो नहीं जाती है । फिर वही बात आएगी कि ईश्वर शून्य - अभाव से सृष्टि की उत्पत्ति करता है या किसी सद्भावात्मक अस्तित्व से ? सर्वथा किसी भी द्रव्य का अभाव ही हो । पदार्थों का अस्तित्व ही न हो, ऐसी शून्यात्मक स्थिति में से ईश्वर कैसे किन पदार्थों की उत्पत्ति करता है ? जगत में जीव और अजीव ये दो ही मूलभूत अस्तित्ववाले
सृष्टिस्वरूपमीमांसा
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