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आकाशादि पंचास्तिकाय पदार्थ नित्य हैं-शाश्वत हैं । फिर उन जीवात्मादि सबको क्षणिक नाशवंत कैसे कहें ? न होते हुए कैसे कहना? अतः न होते हुए भी कहना यह पदार्थ के स्वरूप को मिथ्या सिद्ध नहीं कर रहा है । परन्तु कहनेवाले की बुद्धि की मिथ्यादशा सिद्ध कर रहा है। इसलिए ब्रह्म ही सत्य है और जगत् मिथ्या है यह कहने में प्रथम दोनों के सम्यक् यथार्थ-स्वरूप को समझना अनिवार्य है। फिर क्या मिथ्या है ? कितना और कैसा स्वरूप मिथ्या है यह सिद्ध करना चाहिए। '
हाँ, यहाँ पर सृष्टि बनाई गई है । या ईश्वर ही बनाता है । वही बनानेवाला है । उसी ने सब कुछ बनाया है। आकाश-आत्मादि भी बनाए हैं यह ज्ञान मिथ्या है । जब ईश्वर जो बनानेवाला ही नहीं है उसको बनानेवाला कर्ता मानना यह मिथ्यात्व है । मिथ्या बुद्धि ... धारणा है । और बनानेवाला कर्ता ही ईश्वर होता है ऐसी ज्ञान दशा रखनी मिथ्याज्ञान है, गलत भ्रमणा है । भ्रान्ति है । ठीक इससे विपरीत सम्यग्ज्ञान होता है जो ब्रह्म और जगत् आदि सभी पदार्थों के यथार्थ-वास्तविक स्वरूप को सम्यक् सही सत्यरूप समझता है, जानता है, मानता है, ठीक वैसा ही देखता कहता है, वह सम्यक् ज्ञानवान् है । सच्चा ज्ञानी है । अतः ब्रह्म सत्य जरूर है लेकिन किस स्वरूप में सत्य है? कैसा स्वरूप सत्य है? यह जानना चाहिए। फिर कैसा स्वरूप मिथ्या है? यह जानना चाहिए । कर्तृत्व की बात ईश्वर पर डाल कर यदि उसे कर्ता न होते हुए भी कर्ता ही कहना मानना जानना मिथ्याज्ञान हो जाता है । जगत् ब्रह्माण्ड भी जो न ही उत्पन्न होता है, न ही निर्माण होता है और यदि हम उसे उत्पन्न होता हुआ, निर्माण होता हुआ मानते हैं तो यह ज्ञान भी मिथ्या है । मिथ्यात्व है। अतः सम्यक् सही सत्य स्वरूप जो है वही मानना-जानना लाभदायी है । ईश्वर के द्वारा आत्मादि न बनाने के बावजूद भी यदि हम बनाते हैं ऐसा मानते हैं तो हमारी भूल
क्या चेतनात्मा भी ईश्वर निर्मित है? - __इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में हम देख आए हैं कि इस संसार में अनन्त जीवात्माएँ हैं । “जीवति प्राणान् धारयति इति जीव:" जो जीता है, प्राणों को धारण करता है वह जीव है । जीव देहधारी है। इस देह में जो चेतना शक्ती है वह आत्मा है । चेतना शक्तीवाला होने के कारण उसे चेतन भी कहते हैं । अतः चेतन आत्मादि पर्यायवाची नाम हैं । यह आत्मा जो ज्ञान दर्शनादि गुणवान चेतन द्रव्य है क्या यह भी ईश्वर निर्मित है ? इसे भी क्या ईश्वर ने ही बनाया है ? पीछे भी हम यह स्पष्ट देख आए हैं कि आकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आत्मा, परमाणु, लोक–अलोक-ब्रह्माण्ड आदि ईश्वर
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आध्यात्मिक विकास यात्रा