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________________ में अधिकांश बातें तो सृष्टिकर्ता होने के कारण ही भरी गई है । जगत् की रचना करने के कारण ही काफी विशेषण ईश्वर में भर दिये गए हैं। भले यह सृष्टि कर्ता ईश्वर ब्रह्म तत्त्व से भिन्न है। लेकिन ब्रह्म द्वारा ही उत्पन्न है। ब्रह्म मूलभूत केन्द्र में कारण रूप है। ब्रह्म–ब्रह्मा-ईश्वर और सृष्टि रचना इनमें बराबर कडी जुडी है। ___जब वह सृष्टिकर्ता सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान समर्थ है तो फिर ऐसे सर्वज्ञ क्या मिथ्या सृष्टि बनाएँगे? मिथ्या अर्थात् अभावात्मक स्वरूप है या झूठ स्वरूप है या शून्य स्वरूप है या भ्रम स्वरूप है या स्वप्न तुल्यता है या क्या अर्थ है ? तो क्या सर्वज्ञ ईश्वर... बनाते समय भाविकाल को नहीं जानते थे? त्रिकालज्ञानी सर्वज्ञ होते हैं । यदि ईश्वर सर्वज्ञ हैं तो उनका ज्ञान भी त्रैकालिक एवं सर्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव एवं पर्यायों का ज्ञाता होना ही चाहिए। और ऐसे ईश्वर भावि में मिथ्या कही जानेवाली शून्यात्मक अभावात्मक सृष्टि की रचना क्यों करेंगे? निरर्थक श्रम और आगे कुछ भी नहीं । सृष्टि को मिथ्या-शून्य या अभावात्मक मानने से ईश्वर के सर्जन की क्रिया में निरर्थकतापत्ति दोष आएगा । एक तरफ तो सृष्टि की रचना का बंडा ही जटिल प्रश्न हल नहीं हो रहा है । इस गूढता को इस तरह ताने-बाने की तरह गूंथा गया है कि... उसे समझना ही मुश्किल है। और सिद्ध न होते हुए भी जबरदस्ती ईश्वर में सृष्टि के सर्जन की बात-किसी तरह तोड-मरोडकर बैठाई जाती है । उसे तर्क-युक्तियों से सिद्ध करने में रात दिन-आसमान–जमीन एक कर दिये गए...और अन्त में आते आते..... सृष्टि को मिथ्या कह देना.... यह कहाँ तक उचित होगा? सर्वज्ञ होकर ईश्वर शून्यात्मक-अभावात्मक सृष्टि का सर्जन क्यों करेगा? कैसे करेगा? शून्यात्मक या अभावात्मक में जब कुछ होता ही नहीं है तो फिर सर्जन क्या रहता है? सर्जन भी एक क्रिया है । क्रिया परिणाम कार्य है । यहाँ अफसोस इस बात का है कि ... क्रिया को मानना है, क्रिया के कर्ता (ईश्वर) को भी मानना है । और कार्य स्वरूप सृष्टि को भी मानना तो है ही... लेकिन उस सृष्टि को मिथ्या कहना है । शून्यात्मक-अभावात्मक कहना है । क्या आप कुम्हार, मिट्टी, पानी, मिश्रण, चाक-दण्डादि साधन एवं बनाने की क्रिया आदि.सबको सत्य मानों, अन्त में घडे की भी उत्पत्ति मानों और फिर उसे मिथ्या-शून्य अभावात्मक कहो तो दुनिया कैसे मान लेगी? अरे ! दुनिया की बात तो दूर रही लेकिन खुद बनानेवाला ईश्वर भी (कुम्हार भी) अपने सर्जन को मिथ्या-या शून्य कैसे कहेगा? क्या बनाकर भी यह कहना कि मैंने शून्य अभाव बनाया है ? बहुत समय लगाकर बड़े भारी परिश्रम पूर्वक जो भी कुछ बनाया है वह कुछ भी नहीं है । वह शून्य है। यह बात कैसी अजीब लगती है । तो फिर ईश्वर में सृष्टि के सर्जन की क्रिया मानने के सृष्टिस्वरूपमीमांसा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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