________________
किसने बहाई ? रास्ता किसने बताया? या बनाया? कोई भी दृष्ट या अदृष्ट कर्ता दृष्टिगोचर नहीं हुआ। क्योंकि पानी का अपना ही स्वभाव रहा है कि निम्न प्रदेश में गति करना। बस, प्रवाही-द्रव पदार्थ पानी को निम्न प्रदेश-नीचे के ढाल वाला मिल गया वह बहता ही गया और जाते-जाते... वह समुद्र में मिल गया।
इस तरह नदी बन गई। नदी उस पानी के बहने के रास्ते को संज्ञा दी गई है । यदि निश्चित स्थान पर ही पानी के बहाव को बहाना हो तो मनुष्य नहरें बनाता है। उसमें वह ज्ञान है । मनुष्य जमीन खोद कर-ठीक दिशा में ठीक रास्ते को खोदने आदि की क्रिया करके बनाता है और फिर पानी को बहाता है इस तरह नहरें बनती है। ये नहरें मानव निर्मित–सर्जित हैं। लेकिन नदी मानव निर्मित-सर्जित नहीं वह प्राकृतिक है । जो कर्ता
की क्रिया से ही जन्य नहीं है तो फिर कर्ता को मानना और उसे ही यश देना आदि मिथ्या-असत्य सिद्ध होगा । जब नदी के लिए भी कर्ता और क्रिया मानना सिद्ध नहीं हो सकता है तो फिर समुद्र और हिमालय जैसे के लिए कैसे सिद्ध होगा? समुद्र जो इतना अपार, असीम और अमाप है उसके लिए कैसे कर्ता को मानें? कैसी क्रिया को माने? क्रिया फिर भी एक और एक जैसी हो सकती है। लेकिन कर्ता अनेक ही मानने पडेंगे। लेकिन अनेक ईश्वरों को कर्ता मानने जाने पर अनवस्था दोष की आपत्ति आएगी। कितने ईश्वर मानें? फिर उन ईश्वरों का कर्ता कौन? उन ईश्वरों को किसने बनाया? एक ईश्वर को उसके पहले के दूसरे ईश्वर ने बनाया। दूसरे को तीसरे ने तीसरे को चौथे ने इस तरह आगे बढते ही जाएँ। कोई अन्त ही नहीं आएगा । इस तरह अनन्त ईश्वरों को मानने की अनवस्था आएगी। दूसरी तरफ जब एक ईश्वर से भी सिद्ध नहीं होता है तो फिर अनेक ईश्वरों को मानने पर वैय्यर्थतापत्ति आएगी।
समस्त पृथ्वी-पर्वत मालाएँ आदि बनाने के लिए कैसी क्रिया? किस प्रकार की क्रिया, कितनी क्रिया ईश्वर ने की? वह सब कहाँ की? क्योंकि पृथ्वी ही नहीं थी तब कहाँ ? आकाश में की? यह,भी असम्भव लगता है। ठीक है, क्रिया की तो वह क्रिया किन घटक द्रव्यों को मिलाने की की, जिससे पृथ्वी बनी? क्या आकाश में ईश्वर जब पृथ्वी बना रहे थे वहाँ इतने अनन्त पार्थिव-पृथ्वी बनने योग्य परमाणु उपलब्ध थे या नहीं? या परमाणुओं को भी ईश्वर ने बनाया और फिर उनसे पृथ्वी बनाई ? जैसे गेहूँ द्रव्य हो, उसका आटा हो तो ही रोटी बन सकती है। बिना आटे के तो रोटी संभव ही नहीं है। यहाँ पर रोटी बनाना मानव के लिए संभव है। गेहूँ पीसकर आटा बनाना भी संभव है। और गेहँ भी खेती द्वारा बनाना संभव है । इसलिए कहाँ बीच में ईश्वर की आवश्यकता
आध्यात्मिक विकास यात्रा