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यह सृष्टि-संसार स्वरूप है और इसके बाहर अर्थात् १४ राजलोक क्षेत्र के बाहर अलोक है । यह अनन्त है । अलोक पूर्ण पंचास्तिकायात्मक नहीं है । वहाँ तो सिर्फ एक ही आकाश द्रव्य है । जो सबका आश्रयदाता है । आधारभूत है । लेकिन आश्रय लेनेवाला, आधेयभूत पदार्थ वहाँ कोई नहीं है । गति - स्थिति सहायक धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि किसी का भी अस्तित्व वहाँ है ही नहीं । इसलिए - जीव परमाणु आदि किसी की भी गति स्थिति वहाँ संभव ही नहीं है । इसकी चर्चा इससे पहले भी कर चुके हैं । जीव - परमाणु की गति-स्थिति वहाँ नहीं है तो ईश्वर की भी गति-स्थिति वहाँ संभव नहीं है । इसलिए सृष्टि-संसार के बाहर तो ईश्वर संभव ही नहीं है । अतः ईश्वर के अस्तित्व के लिए सृष्टि–संसार का भी त्रैकालिक अस्तित्व मानना अनिवार्य हो जाएगा। लेकिन सृष्टि का कालिक अस्तित्व मानने के लिए ईश्वर का होना अनिवार्य नहीं है । क्योंकि - आकाशादि ईश्वर प्रयत्न के बिना भी अनादि - अनन्त अनुत्पन्न द्रव्यों की स्थिति सदा ही है । अतः उनको उत्पन्न करने-बनाने का सवाल ही खड़ा नहीं होता है । अतः ईश्वर के बिना सृष्टि रह सकती है । लेकिन अफसोस कि ईश्वर सृष्टि किये बिना अपना अस्तित्व नहीं रख पाता है ।
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सृष्टि जड प्रधान है क्योंकि जडपदार्थों का ही अस्तित्व ज्यादा है । उनमें चेतन तो सिर्फ एक ही द्रव्य है। शेष चारों अजीव द्रव्य हैं। जड-अजीव प्रधान इस सृष्टि में ईश्वर भी चेतन जीव स्वरूप है । चैतन्य गत ज्ञानादि गुण ही ईश्वर के गुण हैं । अतः जीव और ईश्वर में सादृश्यता जरूर है । परन्तु ईश्वर और अजीव - पदार्थों में सादृश्यता कम है । उनके गुणों की समानता होने के अभाव के कारण ।
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यदि सृष्टि को ईश्वर कृत ही माननी हो तो फिर अनादि - अनन्त, अनुत्पन्न - अविनाशी नहीं मान सकेंगे। क्योंकि उत्पन्न द्रव्य अनादि नहीं होता है । जो जो अनादि द्रव्य होते हैं अनुत्पन्न ही होते हैं और जो जो अनुत्पन्न द्रव्य होते हैं वे अनादि ही होते हैं । ऐसा सर्वसाधारण नियम है । आकाशात्मादि अनुत्पन्न द्रव्य हैं अतः वे अनादि हैं । और अनादि हैं अतः अनुत्पन्न द्रव्य हैं । लेकिन ईश्वर यदि उत्पन्न है तो वह अनादि नहीं है । और जो अनादि नहीं है वह अनुत्पन्न भी नहीं है । ईश्वर की प्रक्रिया बताते समय यह स्पष्ट बताया गया है कि ... “ एकोऽहं बहु स्याम् प्रजायेय " मैं अकेला हूँ, अब बहुरूप बनूँ, अनेक रूपधारी बनूँ ... इसके लिए प्रजोत्पत्ति करूँ । तब जाकर जगत् उत्पत्ति करने के लिए ब्रह्म ने ब्रह्मा को उत्पन्न किया । फिर विराट पुरुष ईश्वर उत्पन्न हुआ । उसने आगे सृष्टि की रचना की । क्रमशः सब कुछ बनाते गए। इस तरह सृष्टि उत्पन्न हुई । बनाई गई सृष्टि के लिए
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सृष्टिस्वरूपमीमांसा
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