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ईश्वर की महानता को नीचे उतारकर परमाणु के लेवल पर लाना कहाँ तक उचित गिना जाएगा? ईश्वर के साथ यह अन्याय है। और इसके कारण ईश्वर के स्वरूप में असत्यता का आरोपण होगा इससे ईश्वर का स्वरूप ही विकृत हो जाएगा। वैसे भी ईश्वर का शुद्ध स्वरूप बिगाड कर अन्ध भक्तों ने काफी हद तक ज्यादा विकृत कर दिया है। यह मानव की बड़ी भारी भूल है । ईश्वर के प्रति मानवी का सबसे बडा अपराध भाव है। अतः मानव को चाहिए कि... सबसे पहले ईश्वर के स्वरूप में लाई हुई विकृति दूर करें ।
दूसरी आपत्ति यह आएगी कि... यदि परमाणुओं का सर्वथा नाश हो जाएगा तो फिर ईश्वर परमाणुओं के बिना सृष्टि रचना का कार्य कैसे करेंगे? गेहूँ के आटे के बिना रोटी कैसे बनाएंगे? मिट्टी के बिना घडे की रचना कुंभार कैसे करेगा? वैसी ही हालत ईश्वर की भी हो जाएगी । परमाणुओं के अभाव में ईश्वर बेसहाय लाचार बन जाएंगे। फिर सृष्टि रचना का कार्य कैसे कर पाएंगे? ईश्वर स्वयं तो परमाणुओं को निर्माण करते नहीं हैं। वे तो सिर्फ परमाणुओं का मात्र संयोग ही करते हैं। क्योंकि ईश्वर के पहले भी परमाणुओं का अस्तित्व तो था ही, यह पक्ष स्वीकारा गया है । और दूसरी तरफ परमाणुओं में संयोग-वियोग की स्वाभाविक क्रिया सदा चलती ही रहती है । यह संयोग-वियोग पदार्थों का बनना-बिगडना भी चलता ही रहता है। फिर कहाँ सवाल रहा ईश्वर के करने का? इस तरह ईश्वर दोनों तरफ से फँसते हैं । यह और किसी कारण नहीं सिर्फ ईश्वर को रचयिता-कर्ता मानने के कारण है । यदि ईश्वर में से कर्तापने का विशेषण निकाल लें और सृष्टि बनाने की जिम्मेदारी ईश्वर पर न रखें, ईश्वर को सृष्टि रचना का निमित्त कारण भी यदि न मानें, और सर्जनहार-विसर्जनहार-पालनहार आदि भी न मानें तो ही ईश्वर का स्वरूप बच सकता है । विकृत नहीं होगा। और ईश्वर पर दोषारोपण भी नहीं होगा । न ही कालिमा लगेगी और न ही हल्का स्वरूप आएगा। अतः ईश्वर का निर्दोष स्वरूप निश्चित करना अत्यन्त आवश्यक है। और इसके लिए मुख्य कारणभूत सृष्टिकर्तृत्व के कारण को पूरी तरह तिलांजली देनी ही चाहिए।
लेकिन, ईश्वरकर्तृत्ववादियों के लिए यह संभव नहीं हो सकेगा। क्योंकि ईश्वर में से कर्तृत्ववादिपना निकालना मतलब... किसी जीव में से प्राण निकालने जैसी परिस्थिति हो जाएंगी । ईश्वर को और सृष्टि को एक ही सिक्के के दो पहलु ईश्वरकर्तृत्वादियों ने मान लिए है । इससे दोनों एक दूसरे के पर्याय जैसे एक ही बन चुके हैं । अब यदि ईश्वर को न मानें तो सृष्टि-जगत् के अस्तित्व को मानने में आपत्ति आएगी और दूसरी तरफ यदि सृष्टि-जगत् को न मानें या फिर उसे ईश्वर द्वारा कृत रचना न माने तो ईश्वर के और सृष्टि
सृष्टिस्वरूपमीमांसा
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