________________
द्वारा न की हुई माने तो भी सृष्टि के स्वरूप में कोई हानि नहीं आएगी । बाधा नहीं पहुँचेगी । ऊपर से सृष्टि का सही- सत्य स्वरूप सिद्ध होगा । सच्चाई निखर आएगी । लेकिन ईश्वर के स्वरूप में हानि आ जाएगी। जब सृष्टि-रचना का कार्य आदि कुछ भी न करे, तो फिर ईश्वर में ईश्वरत्व ही कैसे मानना ? कैसे आएगा ? यह समस्या बडा भारी सिरदर्द खडा कर देगा । इसलिए ईश्वरवादी सृष्टि की रचना के कार्य को ईश्वर के बिना अलग कर ही नहीं सकते हैं और उसी तरह सृष्टि को ईश्वर द्वारा कृत रचना के सिवाय कुछ कह भी नहीं सकते हैं । इस तरह अन्योन्याश्रय दोषग्रस्तता की आपत्ति आएगी ।
जैन दर्शन की तरह ईश्वर को बनानेवाले के बजाय बतानेवाला ही मान लें तो ईश्वर के ऊपर से यह कलंक ही दूर हो जाय और ईश्वर का शुद्ध स्वरूप निखर आए । उसी तरह जगत (सृष्टि) का भी शुद्धतम स्वरूप स्पष्ट हो जाय। दोनों के स्वरूप निर्दोष- दोषरहित सिद्ध हो जाय । यही सर्वोत्तम मार्ग है । इस समाधान से ईश्वर पहले या सृष्टि पहले ? सृष्टि के कारण ही ईश्वर को पूर्णता प्राप्त हुई और ईश्वर के कारण सृष्टि को पूर्णता प्राप्त हुई यह झगडा खडा नहीं रहेगा । यह कैसी अजीब सी विचित्र विचारधारा लगती है... कि सृष्टि की रचना करने के कारण ही ईश्वर के स्वरूप में पूर्णता आई ? यदि सृष्टि की रचना न करते तो ईश्वर अपूर्ण ही रह जाता पूर्णता ही नहीं आती । और इसी तरह ईश्वर सृष्टि की रचना न करते तो सृष्टि को भी पूर्णता प्राप्त नहीं होती यह कितनी अजीब सी विचित्र बात है । लेकिन कभी यह भी सोचा है ? कि सृष्टि की रचना में रही हुई सैकडों प्रकार की अपूर्णता के कारण ईश्वर में भी अपूर्णता आएगी कि नहीं ?
संसार में सेंकडों प्रकार की विचित्रता है । अनेक प्रकार की विषमता है । विविधता भी है । ये सब क्या है ? अपूर्णता नहीं तो और क्या है ? इसके कारण ईश्वर के स्वरूप में कितनी कालिमा आएगी। ईश्वर के द्वारा ही रची गई इस प्रकार की विचित्र सृष्टि के कारण ईश्वर पर भी बडा भारी कलंक लग गया है । वह क्यों और कैसा है यह भी देखें ।
सृष्टि में विचित्रता - विषमता और विविधता
समग्र सृष्टि में आपाततः दृष्टिपात करने से स्पष्ट पता चलता है कि... सर्वत्र विषमता विचित्रता और विविधता भरी पडी है । विषमता इस विषय में कि कहीं भी समानता—एक जैसापन दिखाई ही नहीं देता है । एक राजा है तो दूसरा रंक है, एक गरीब है तो दूसरा अमीर है, एक सुखी है तो दूसरे दस दुःखी हैं। एक को खाने के लिए पूरा मिलता है तो दूसरे को बिल्कुल ही नहीं मिलता है । एक को ज्यादा संतान प्राप्त है तो
७०
आध्यात्मिक विकास यात्रा