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________________ इसका मतलब सृष्टि रचना के कार्य के कारण ही उसके ईश्वरत्व को सिद्ध करना कहाँ तक उचित है । यदि सृष्टि रचना ही न हो तो ईश्वरत्व भी नहीं रहेगा? ईश्वर का अस्तित्व भी नहीं रहेगा क्या? तब तो फिर जब सृष्टि ही नहीं थी तब ईश्वर थे कि नहीं? यदि नहीं थे तो क्या सृष्टि के साथ ही ईश्वर की भी उत्पत्ति हो गई? क्या सृष्टि और ईश्वर दोनों सहभू हैं? एक साथ ही उत्पन्न होनेवाले हैं? यदि एक साथ ही उत्पन्न होनेवाले हैं तब तो कोई किसी का कार्य-कारण जन्य-जनक भी नहीं बन सकेगा। फिर तो ईश्वर के करने के लिए कुछ शेष रहता ही नहीं है । तो फिर कर्तापने का कर्तृत्व कहाँ आया? और कर्तृत्व ही नहीं आएगा तो ईश्वरत्व कैसे आएगा? क्योंकि कर्तृत्व के कारण ईश्वरत्व और ईश्वरत्व के कारण कर्तृत्व... इस तरह दोनों यदि साथ ही चलेंगे तो दोनों एक-दूसरे के बिना रह ही नहीं सकेंगे। तो क्या ऐसी व्याप्ती बनानी कि जहाँ जहाँ ईश्वरत्व रहे, वहाँ वहाँ सृष्टिकर्तृत्व रहे? कि जहाँ जहाँ सृष्टि कर्तृत्व रहे वहाँ वहाँ ईश्वरत्व रहे? जैसे सूर्य के साथ दिन और दिन के साथ सूर्य का अन्वय सम्बन्ध है । कभी भी बिना सूर्य के दिन रहा नहीं है और कभी भी बिना दिन के सूर्य रहा नहीं है । ___अब यह सोचिए कि– दिन और सूर्य में कोई कार्य-कारणभाव या जन्य-जनक भाव है या नहीं? संसार के लौकिक व्यवहार में तो सूर्य को दिनकर-दिन का करनेवाला कहा जाता है लेकिन निश्चय नय की दृष्टि से सत्यस्वरूप देखा जाय तो सूर्य के साथ तो सदा ही हमेशा ही दिन रहता है । फिर करने की बात कहाँ से आई? रात तो सूर्य के साथ रहती ही नहीं है । और दिन कहीं सूर्य को छोडकर अन्यत्र चला जाता ही नहीं है । जब से सूर्य है तब से दिन के साथ ही है और जबसे दिन है तब से सूर्य के साथ ही है। इसलिए सूर्य को दिन करने की बनाने की कोई क्रिया करनी ही नहीं पडती है। ये जो दिन के बाद रात और रात के बाद फिर दिन आने का क्रम है यह तो सिर्फ सूर्य-चन्द्र की गति के कारण है। मेरु पर्वत के चारों तरफ गोलाकार स्थिति में घूमते-सतत परिभ्रमण करते रहने के कारण सूर्य की उपस्थिति के भाग को दिन कहा गया है और सूर्य की अनुपस्थिति के भाग को रात कहा गया है। इस सूर्य और दिन के दृष्टान्त की तरह ही क्या ईश्वर और सृष्टि के बीच भी सम्बन्ध मानें? तो तो फिर सूर्य और दिन में जैसे कर्तापने की वास्तविकता नहीं रहती है वैसे ही ईश्वर में भी सृष्टि के कर्तापने की सच्चाई नहीं रह पाएगी । तो फिर ईश्वर में सृष्टि कर्तृत्व की स्थिति नहीं आ पाएगी । और कर्तृत्व के न आने से ईश्वर के अस्तित्व में अभाव आ जाएगा। क्योंकि ईश्वर तो सृष्टि किये बिना रह ही नहीं सकता है । और सृष्टि को ईश्वर के सृष्टिस्वरूपमीमांसा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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