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सेंकडों चीजें बनती हुई, बनाई हुई देखी जाती है लेकिन... मिट्टी को बनाते हुए कभी भी देखा नहीं गया। लेकिन वह भी वस्तु तो है ही। अतः लोग क्या करते हैं? मिट्टी का बनाने वाला जब कोई नहीं दिखाई दिया तब ईश्वर को ही मान लिया? जो जो ईश्वर होगा वह मिट्टी बनाएगा? या जो जो मिट्टी को बनाएगा वह ईश्वर कहलाएगा? यदि आप मिट्टी के बनाने वाले को ईश्वर कहने के पक्ष में हो तो.... मिट्टी तो पृथ्वीकायिक पदार्थ है । पार्थिव है । पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव मिट्टी के रूप में उत्पन्न हुए । पार्थिव शरीर बनाया वे उसी रूप में जी सकते हैं... रह सकते हैं । वह तो मिट्टीगत एकेन्द्रिय जीव है तो क्या उसको ईश्वर कहना? जो भी मिट्टी का कर्ता हो वही ईश्वर, ऐसा किसी वस्तु के प्रति कहने से... कल जब उस वस्तु का कर्ता स्पष्ट सिद्ध हो जाएगा तो क्या उसे ही ईश्वर मानना? वस्तु का कर्ता व्यक्त स्पष्ट न हो तो क्या उसके लिए ईश्वर को ही मान लेना? तो क्या ऐसा नियम बनाना कि... जिन... जिन वस्तुओं का व्यक्त स्पष्ट कर्ता न दिखाई देता हो उसके लिए ईश्वर को ही कारण मान लेना? यदि ऐसा नियम बनाएंगे और अदृष्ट कर्ता को ही ईश्वर मानेंगे... और यदि कल उस वस्तु का कर्ता सिद्ध हो जाएगा उस दिन ईश्वर कहाँ जाएगा? या तो फिर उस ईश्वर को ही उस वस्तुगत जीव मानने की आपत्ति आएगी और या फिर उस वस्तुगत जीव को ईश्वर मानने की आपत्ति आएगी इसलिए यह नियम भी बनाना गलत सिद्ध होगा । वस्तु जो उत्पन्न हुई है वह जिस किसी जीव कर्ता के द्वारा उत्पन्न हई है उसके कर्ता के रूप में जीव को ही मान लें तो क्या आपत्ति आएगी? निरर्थक ईश्वर को बीच में लाकर उसका स्वरूप विकृत करने में कहाँ तक उचितता लगती है ? इसलिए जिस किसी भी वस्तु का कर्ता अव्यक्त अस्पष्ट हो उसके लिए ईश्वर को मान लेने की जल्दबाजी करने में कल कर्ता स्पष्ट व्यक्त होने के बाद फिर ईश्वर के स्वरूप में हानि आएगी । अतः अच्छा तो यह होगा कि.. पहले से ही.. उस वस्तु के जीवादि कर्तृत्व को स्पष्ट समझ लें ताकि... ईश्वर के स्वरूप पर विकृति का दोष नहीं आएगा।
अच्छा, जिन वस्तुओं का कर्ता स्पष्ट हो सकता हो वहाँ तो बात अलग रहेगी। लेकिन जिन वस्तुओं का कोई कर्ता ही न हो उनके लिए क्या मानना? उदाहरणार्थआकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीव, परमाणु आदि इन पंचास्तिकायात्मक जगत के पाँचों द्रव्यों के बारे में किसको कर्ता मानें? क्योंकि उनका कर्ता कोई ईश्वर भी सिद्ध नहीं होता है और वे सभी अजीव-पदार्थ हैं । अतः जीवकर्तृत्व भी इनका सिद्ध नहीं हो सकता है । अतः अन्य तीसरे किसको मानना? जबकि तीसरा तो कोई है ही नहीं? तीसरी तरफ ये पंचास्तिकाय अनादि अनुत्पन्न द्रव्य हैं । नियम ऐसा है कि... जो जो अनादि
सृष्टिस्वरूपमीमांसा
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