________________
से होशियारी के साथ हाथ चालाकी से कालविलम्ब न करते हुए तीव्रता के साथ आपकी
आँखों के सामने ही खेल दिखा देते हैं । और दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देते हैं । लेकिन ६०% से ७०% जादूगर तो हाथचालाकी-हाथसफाई का खेल दिखाकर जादू बताते हैं । ___हाँ... कई जादूगर ऐसे भी होते हैं जो भूत-भौतिक उपासना के बल भौतिक जादू भी दिखाते हैं । भूत अदृश्य होते हैं । वे शरीरधारी ही हैं, लेकिन दिखाई नहीं देते हैं । मंत्र साधना से मेली विद्या साधकर भूत-प्रेतों को साधनेवालों के लिए इस प्रकार के खेल दिखाना आसान है । जैसे कुत्तों को पालकर काम कराया जाता है। वैसे ही सबल कोई व्यक्ति भूत-प्रेतों को वश में करके.... मंत्र बल से मैली विद्या से भूतादि को साधकर अपने इच्छित कार्यों को कर सकता है । अपने आधीन बनाकर उन्हें हुक्म देकर ... बडी जल्दी से तीव्रता के साथ...किसी भी वस्तु का लाना, छिपाना, अदृश्य करना आदि जादू के खेल करना आसान रहता है । यह मनोरंजन के लिए तो ठीक है लेकिन वास्तविकता के लिए क्या? तब सब कुछ बना लेने वाले ऐसे जादूगर ... फिर पैसे क्यों माँगते हैं? पेट भरने के लिए फिर उसको पैसे पैसे के लिए मोहताज क्यों होना पडता है ? यदि वह स्वयं ही.. जब बना सकता है तो फिर रुपए-पैसे क्यों नहीं बना सकता है ? उसके लिए माँगना क्यों पडता है ? यह तो हुई जादूगर की स्थिति।
क्या ईश्वर को भी जादूगर जैसा ही कहना? क्या ईश्वर भी जादूगर की तरह ही सृष्टि उत्पन्न करता है? क्या वह भी भूत-प्रेतों को रखता है और साधता है ? उनसे काम लेता है? भूतों के पास काम कराता है ? तो क्या ईश्वर की सृष्टि भी भूत-भौतिक ही माननी? यह बात ही कितनी सही लगेगी? फिर भूतों को कौन बनाएगा? आप कहेंगे भूतों को भी ईश्वर ही बनाएगा तो किसमें से भूतों को बनाएगा? कैसे बनाएगा? भूतों को भी बनाने के लिए ईश्वर को किस घटक द्रव्य की आवश्यकता पडी? या फिर भूतों को भी ईश्वर ने मायावी सृष्टि की तरह ही उत्पन्न कर दिया? यदि मायावी सृष्टि माने, मायावी सृष्टि में वास्तविकता कितनी और कृत्रिमता–अवास्तविकता कितनी? तो क्या यह सारी सृष्टि अवास्तविक कृत्रिम ही माननी? बिना किसी घटक द्रव्यों की सहायता के ही ... ऐसे ही बना दी? स्वयं उत्पन्न होने और बनाने में अन्तर
कई चीजें जो स्वयमुत्पन्न होती हैं और कई चीजें बनाई जाती हैं । जैसे मिट्टि स्वयं उत्पन्न होती है। जबकि घडा कुंभार के द्वारा बनाया जाता है । घडे ईंट आदि मिट्टी की
६६ .
आध्यात्मिक विकास यात्रा