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________________ बात तो सही है, लेकिन... अलोक में जो आकाश है उसकी रचना किसने की? इस प्रश्न का समाधान क्या रहेगा? बात यहीं छोड देने पर ईश्वर के बिना भी अलोक के आकाश का अस्तित्व स्वीकारना पडेगा। तो फिर ईश्वर के बिना भी सृष्टि के पदार्थों का अस्तित्व मानने पर ईश्वर की सर्व शक्तिमत्ता में क्षति आएगी । सर्व विश्वकर्तृत्व के विशेषण की निरर्थकता सिद्ध होगी। और ईश्वर के बिना भी किसी पदार्थों का अस्तित्व रहेगा तो वह ईश्वर के किये बिना ही रहेगा । तो फिर ईश्वर के करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। ईश्वर के किये बिना और ईश्वर के पहले भी पदार्थों का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है, अतः फिर करनेवाले की आवश्यकता-उपयोगिता निरर्थक हो जाती है। किससे किसके बनने की संभावना? किन पदार्थों से किस प्रकार के द्रव्य बन सकते हैं? और किससे कैसे नहीं बन सकते हैं? यह विचार भी आवश्यक है । यदि बनानेवाला जो भी कोई हो या न हो इसका विचार बाद में करेंगे लेकिन... घटक-कारक द्रव्य कैसे हैं उस पर आगे के बनने वाले पदार्थों का आधार है। उदा.- आकाश द्रव्य किस में से बना? धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय ये द्रव्य किस प्रकार के घटक द्रव्यों से बने हैं ? आकाशादि अरूपी पदार्थ है और परमाणु सर्वथा रूपी है । तो क्या अरूपी से रूपी पदार्थ बन सकेंगे? परमाणु ज्ञानादि गुणरहित सर्वथा जड है। तो ऐसे जड-रूपी पदार्थों से अरूपी ज्ञानी आत्मा की उत्पत्ति-निर्मिती क्या संभव हो सकती है? कभी भी नहीं। इसलिए अगर बनाने वाला कितना भी सर्वशक्तिमान समर्थ सक्षम हो लेकिन बनाने के लिए घटक–कारक द्रव्यों के बिना वह भी क्या करेगा? जिस तरह मिट्टी के बिना कुंभार घडा नहीं बना सकता। आटे के बिना गृहिणी रोटी नहीं बना सकती इत्यादि... ठीक वैसे ही बनानेवाले को जिस सृष्टी की रचना करनी हो उसको भी किसी न किसी घटक-कारक द्रव्यों का सहारा लेना ही पड़ता है। हो सकता है शायद आप ऐसा कहेंगे कि... इसमें क्या? कई जादूगर भी तो बिना किसी द्रव्य की सहायता के जादुई खेल दिखाते हुए कई चीजें निर्माण कर देते हैं । वहाँ कोई भी आधारभूत कारक घटक द्रव्य नहीं भी होते हैं । सिर्फ हाथों को रगडते-मसलते हुए भी बनाकर दिखाते हैं । जैसे खाली डिब्बा खोलकर दो कबूतर उडा देते हैं । ऐसा दिखाते हैं । लेकिन विचार करने पर आपको ख्याल आएगा कि... यह तो सिर्फ हाथ चालाकी ही है । दो डिब्बे रहते हैं एक में नीचे पहले से ही कबूतर रखे हुए रहते हैं । और दूसरे में कुछ नहीं खाली होता है । बडी सिफत सृष्टिस्वरूपमीमांसा ६५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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