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बाद में कर्ता ने बनाया। तो परमाणु कैसे गए? स्वयं गए या उन्हें कोई लेकर गया? फिर वे परमाणु किस जाती के थे? किन गुणधर्मों वाले थे? जब कर्ता को ही इतना सूक्ष्मतम स्वरूप धारण करके जाना पडा तो फिर परमाणु जो स्वयं सूक्ष्मतम थे उनको वे कैसे साथ ले गए? और कैसे बना पाए? यह सब विचारणा व्यर्थ-निरर्थक है। क्योंकि अलोक में गति सहायक धर्मास्तिकाय, तथा स्थिति सहायक अधर्मास्तिकाय नामक एक भी द्रव्य है ही नहीं। इसलिए न तो परमाणु का जाना होता है और न ही ईश्वर का जाना होता है।
प्रकृति के सिद्धान्तों के अनुसार जब ईश्वर के बारे में कुछ असंभव बताया जाय तो बिना किसी समझ के ईश्वर की सर्वव्यापकता और सर्वशक्तिमत्ता को आगे करके किसी भी तरह तोड-मरोडकर भी ईश्वर की शक्ती से उसे शब्दों में बैठा देते हैं । यह भी ईश्वर के स्वरूप को विकृत करने की एक गलत विचारधारा है। अरे ! सर्व कर्म मुक्त सर्वशक्तिमान सिद्ध भगवान भी लोकान्त तक ही जाकर रुक जाते हैं । बस, लोकान्त के आगे अलोक में वे नहीं जा पाते हैं । वे तो सर्वथा अशरीरी होते हुए भी नहीं जा सकते हैं। क्योंकि अलोक में गति सहायक धर्मास्तिकाय न होने के कारण किसी की भी गति वहाँ संभव ही नहीं है। फिर जाने का प्रश्न ही कहाँ खडा होता है ? सिद्ध भले ही सर्व कर्ममुक्त-सर्वशक्तिमान हो फिर भी सहायक द्रव्य के अभाव में उनकी भी गति संभव नहीं है, तो फिर ईश्वर जो सूक्ष्म शरीर बनाए करे ... उसके लिए कहाँ से संभव हो सकता है? यदि सूक्ष्मता के नाम पर ईश्वर के लिए संभव करना ही हो तो फिर परमाणु भी तो सूक्ष्मतम ही हैं, उसके लिए भी संभव ही करना पडेगा । ना नहीं कह सकते हैं। .
___ईश्वर यदि अलोक में जाते हैं तो कैसे जाते हैं ? सशरीरी या अशरीरी? अगर सशरीरी ईश्वर अलोक में जाते हैं तो वे किस प्रकार का शरीर बनाकर जाते हैं ? यदि ईश्वर सूक्ष्म शरीर धारण करके जाते हो तो... वह सूक्ष्म शरीर किसका बनेगा? वह भी तो परमाणुओं से ही बनाया जाएगा.? क्योंकि किसी को भी शरीर बनाने के लिए.. परमाणओं की ही मदद लेनी पडती है । उसी से बना सकता है। अगर परमाणुओं को ग्रहण करके ही शरीर रचना करता है तो कितने परमाणुओं का पिण्ड बनाते हैं ? आखिर जितने भी परमाणुओं का पिण्ड बनाएंगे वह किसी १ परमाणु से तो स्थूल ही होगा? तो फिर परमाणुओं के समूहात्मक पिण्डवाले शरीरधारी ईश्वर अलोक में जा सकते हो तो एक परमाणु जो ईश्वर से अनेक गुना ज्यादा सूक्ष्मतम है वह क्यों नहीं जा सकता है ? लेकिन जब अलोक में जाना ही संभव नहीं है तो फिर यह चर्चा किस लिए?
आध्यात्मिक विकास यात्रा