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कि नहीं ? शायद आप कहेंगे कि नहीं ? आज कहीं भी नहीं हैं ? वे तो आकाश बन जाने के बाद बचे ही नहीं है । जितने थे उतने सभी पूरे हो गए, समाप्त हो गए। ठीक है । तब तो आकाश नहीं था तब भी उन परमाणुओं का अस्तित्व मानना ही पडेगा । अच्छा, यदि हाँ, तो आकाश के अभाव में वे परमाणु विना आकाश के कहाँ थे ? किस क्षेत्र में थे ? यह बात तो निश्चित ही है कि आकाश ही सबके लिए आश्रयदाता पदार्थ है । आकाश में ही सभी रहते हैं । जीवों का, अजीवों का सबका रहना एक आकाश में ही है। आकाश पूरा एक ही है । अलग अलग आकाश है ही नहीं । भिन्न-भिन्न आकाश की विवक्षा कर ही नहीं सकते हैं । हाँ, उपाधि भेद से औपाधिक रूप से घटवर्ती को घटाकाश, उदरवर्ती को उदराकाश संज्ञा दी जा सकती है । लेकिन ये औपाधिक हैं। मूल में तो सर्वत्र लोकालोक क्षेत्रवर्ती संपूर्ण एक ही है, अखण्ड द्रव्य ही है। अलोक एक ऐसा स्थान है कि... अलोक में किसी भी जीव का जाना-आना, जन्म-मरणादि संभव ही नहीं है । और वहाँ तो किसी भी प्रकार के परमाणु की संभावना भी नहीं है । तो फिर वहाँ का आकाश किसी भी बनानेवाले कर्ता ने कैसे बनाया ? बनानेवाला कर्ता-अलोक में जा ही नहीं सकता है और वहाँ परमाणुओं का अस्तित्व था भी नहीं और है भी नहीं तो फिर आकाश द्रव्य कैसे बना ? और आकाश द्रव्य किसी भी परमाणुओं के संमिश्रण से बननेवाला पदार्थ ही नहीं है तो फिर आकाश द्रव्य कैसे बना ? शायद आप कहेंगे कि बनानेवाले कर्ता ने अपना स्वरूप इतना सूक्ष्म कर लिया होगा कि वह अलोक में जाकर भी शीघ्र आकाश सूक्ष्मतम बनाया होगा, और गति भी इतनी शीघ्र बनाई होगी कि ... बहुत शीघ्रता के साथ आकाश बनाकर वह शीघ्र वापिस आ गया होगा ? ठीक है । लेकिन विचार करिए... जगत् में सबसे सूक्ष्म स्वरूप ही परमाणु का है, और उससे ज्यादा स्वरूप भी क्या उस कर्ता ने बना लिया ? क्या कर्ता अपना स्वरूप परमाणु से भी सूक्ष्म बना सकता है ? और इतना सूक्ष्म बनाकर - सूक्ष्म बनकर वह सूक्ष्मतम परमाणुओं में किसी प्रकार का संमिश्रण कर सका ? ठीक है, कर्ता स्वयं सूक्ष्मरूप लेकर अलोक में चला गया... लेकिन जब वहाँ अन्य किसी भी प्रकार के परमाणु थे ही नहीं तो फिर आकाश बनाया कैसे ? किसमें से बनाया ? किसके मिश्रण से बनाया ? जब अलोकाकाश में किसी का गमन ही संभव नहीं है, क्योंकि गति सहायक धर्मास्तिकाय नामक द्रव्य का अस्तित्व ही वहाँ संभव नहीं है तो फिर वहाँ कौन जा सकेगा ? अगर सूक्ष्म रूप धारण करके कर्ता जा सकता है, तो फिर परमाणु क्यों नहीं जा सकते हैं ? जरूर जा सकते हैं। क्योंकि वे भी तो सर्वथा सूक्ष्म ही हैं । चलो, विचार लो क्षण भर के लिए कि सूक्ष्मतम होने के कारण परमाणु अलोक में चले गए ।
सृष्टिस्वरूपमीमांसा
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