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________________ कहने की कोशीष करेगा । वह इन्सान सिर्फ इतना ही सोच पाएगा कि बतानेवाले को तो कोई मेहनत ही नहीं है। जबकि बनाने वाले को तो कितना परिश्रम हुआ है ? प्रत्येक वस्तु उसे बनाने में कितना समय, कितना श्रम, कितनी साधन-सामग्री लगी होगी? तब जाकर कुछ बन पाएगा? आपकी उपरोक्त विचारधारा इस दृष्टि में सही भी है, परन्तु जगत में क्या बनना संभव है और क्या बनना असंभव है? उसका भी तो विचार करना ही पडेगा या नहीं? शायद आप तो ऐसा कहेंगे कि- ईश्वर जो सर्वशक्तिमान समर्थ-सक्षम है उसके लिए क्या बनाना संभव और क्या बनाना असंभव है ऐसा विचार ही नहीं करना चाहिए। क्योंकि सर्वशक्तिमान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है । सब कुछ संभव ही है । ठीक है । यदि आपकी यह विचारधारा क्षण भर के लिए ठीक मान भी ले तो भी ऐसा सर्वशक्तिमान सक्षम-समर्थ ईश्वर जिसको आप सबकुछ बनानेवाला मानते हो उसने यह सारा लोक अलोकात्मक विराट विश्व-ब्रह्माण्ड कैसे बनाया? क्या किया जिससे यह जगत बन गया? ऐसे कैसे बन गया? “जगत का नियम है कि... कुछ भी बनाने के लिए उसके सहायक रूप में- कच्चे माल की आवश्यकता अनिवार्य है। बिना किसी प्रकार के आधारभूत कच्चे माल की सहायता के हम किसी भी वस्तु को बना ही नहीं सकते हैं। एक रोटी भी बनानी हो तो गेहूँ के आटे का होना आवश्यक है । आटे के लिए गेहूँ का होना आवश्यक है । गेहूँ के लिए-बीज का । बीज के लिए खेती की आवश्यकता है । इस तरह आधारभूत सहायक द्रव्य की आवश्यकता के बिना बनानेवाला अकेला भी क्या करेगा? कैसे बना पाएगा? यद्यपि बनानेवाला बनाने की प्रकिया जानता भी हो, उसका उसे ज्ञान भी हो तो भी वह बिना सहायक साधन के कैसे बना पाएगा? __पिछले अध्याय में हम आकाश द्रव्य का विचार कर चुके हैं अब उस आकाश के बारे में सोचिए..: बनानेवाला कितना भी समर्थ-सबल-सक्षम और सशक्त भी हो तो भी आकाश कैसे बन सकता है ? कैसे बनाया जा सकता है ? आधारभूत सहायक कच्चा द्रव्य कौन सा लें?... शायद आप कहेंगे परमाणु लेकर आकाश बनाया गया होगा। अच्छा, तो उन परमाणु को किसने बनाया? वे किसमें से बने हैं ? और ऐसा भी मानें कि परमाणुओं के मिश्रण से आकाश की रचना की है, तो वे कौन से परमाणु थे? किस प्रकार के परमाणु थे? ऐसे जगत में कौनसे परमाण हैं जो आकाश के रूप में बन सकते हैं? आकाश रूप में परिवर्तित होने की क्षमता रखते हैं। क्या वैसे परमाणु आज भी कहीं हैं आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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