________________
३ ।
५ वें राजलोक में –३ री नरक ६ ठे राजलोक में __ -२ री नरक ७ वें राजलोक में _ - १ ली नरक
इस तरह ७ राजलोक क्षेत्र में ७ नरक पृथ्वियाँ फैली हुई हैं । इन पृथ्वियों के नाम इस प्रकार हैं..
रत्न-शर्करा-वालुका-पङ्क-धूम-तमो-महातमः प्रभा भूमयो घनाम्बु-वाताऽऽकाश-प्रतिष्ठाः सप्ताऽधोध: पुथुतराः ॥३-१॥
तत्त्वार्थाधिगम सूत्रकार ने ७ नरक पृथ्वी के नाम तीसरे अध्याय में सातों नरक पृथ्वियों
के नाम इस प्रकार दिये हैं । रत्नप्रभादि धम् | १ | रत्नप्रभा
नाम उस पृथ्वी की वहाँ की जैसी वंशा २ | शर्कराप्रभा
स्थिति है उसके सूचक यथार्थ नाम है ।
रत्नों की प्रभा का ही अल्प प्रकाश हो शेला वालुकाप्रभा
वह रत्नप्रभा पहली नरक पृथ्वी है। अंजना ४ पंकप्रभा
यहाँ सूर्य-चन्द्रादि तो सर्वथा नहीं है रिष्टा ५ धूमप्रभा
परन्तु उनका प्रकाश भी यहाँ नहीं मघा ६
___ पहुँचता है । सूर्य चन्द्रादि तिर्छा लोक महातमःप्रभा में अढाई द्वीप समुद्र विस्तार में
मेरुपर्वत के चारों तरफ परिभ्रमण करते हए समतला भूमि से ७९० योजन से ९०० योजन के ११० योजन बीच के विस्तार में ही है । सूर्य चन्द्र से नीचे ७९० योजन बाद पृथ्वीतल का विस्तार है । पृथ्वी के भी नीचे ९०० योजन तक तिर्खा लोक का विस्तार है उसके बाद अधोलोक शुरू होता है । असंख्य योजनों के बाद पहली नरक पृथ्वी रत्नप्रभा आती है। यहाँ रत्नों की प्रभा का सामान्य प्रकाश है । यहाँ अनेक नारकी जीव रहते हैं । विश्व व्यवस्था की आश्चर्यकारी स्थिति
किसी भी व्यक्ति को आश्चर्य लगे ऐसे विचार कई बार इस विश्व संबंधी आते हैं। अखिर इस पृथ्वी के नीचे क्या होगा? यह पृथ्वी इतनी वजनदार भारी कैसे टिकी होगी? कौन उठाकर खडा होगा? इत्यादि विचार आने स्वाभाविक हैं।
तमःप्रभा
माघवता
जगत् का स्वरूप
५७