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आएगी तब सर्वनाश-प्रलय हो जायेगा । ऐसे झूठे प्रचार से लोगों में भयग्रन्थि निर्माण करके अपने मत वाले बनाने की प्रवृत्ति धर्म के नाम जो चला रहे हैं वे.... कितना भारी छल कर रहे हैं? ऐसे झूठे प्रचारकों से सावधान रहना चाहिए।
यह व्यवहार काल की गणना है जो अनादि अनन्त काल तक चलती ही रहती है। यह ज्योतिष चक्र की गतिशीलता पर आधारित सिर्फ मनुष्य क्षेत्र में ही है । ज्योतिषकरंडक ग्रन्थ में कहा है कि
लोयाणु भज्जणीयं जोइस चक्कं भणंति अरिहंता।
सव्वे कालविसेसा, जस्स गइ विसेस निप्पन्नां ।। जिसकी गतिविशेष से काल के भेद उत्पन्न होते हैं उस ज्योतिष चक्र को अरिहंत परमात्मा ने लोक स्वभाव से उत्पन्न गतिशील कहा है । यह की गई कृत-कारित व्यवस्था नहीं है। स्वयं स्वाभाविक है।
अधोलोक का स्वरूप
इस ग्रन्थ में समग्र विराट ब्रह्माण्ड की विचारणा चल रही है । इस लोक के स्वरूप में जैसा ऊर्ध्वलोक तिर्छालोक का स्थान-स्वरूप है वैसे ही अधोलोक का भी स्थान-स्वरूप है । जैन शास्त्रों में समस्त विराट ब्रह्माण्ड The Whole Cosmos को १४ राजलोक की संज्ञा दी गई है। इसमें ऊर्ध्व-अधो और तिर्छा इन तीनों लोकों की व्यवस्था है। हमारा जो मनुष्य लोक-तिर्खा लोक है इसके नीचे अधोलोक है। इसे ही पाताल लोक भी कहते हैं और वहाँ नारकी जाती-नरकगति के जीवों की बसती होती है । अतः नरकलोक-नरक क्षेत्र भी कहा गया है।
यह ७ राज लोक विस्तार वाला है । ऊपर १ राजलोक प्रमाण चौडा है फिर क्रमशः नीचे विस्तार बढ़ता ही जाता है। जो बढ़ते-बढते नीचे ७ राजलोक प्रमाण चौडा हो जाता है । इस तरह त्रिशंकु के आकार का लगता है । प्रत्येक एक एक राजलोक में एक एक नरक है । १४ राजलोक में संपूर्ण लोक क्षेत्र में नीचे गिनती करने पर
१ ले राजलोक में : __ - ७ वीं नरक २ रे राजलोक में - ६ ठी नरक ३ रे राजलोक में - ५ वी नरक ४ थे राजलोक में - ४ थी नरक
आध्यात्मिक विकास यात्रा