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________________ पृथ्वी की जाडाई जैन दर्शन के शास्त्रों में इसका सचोट स्वरूप मिलता है । तत्त्वार्थकार घनोदधि कहते हैं- “घनाम्बुवाताऽकाश प्रतिष्ठाः" – विश्व में जो आकाश है १८०००० या काला घनवात तनवात उसमें अवकाश देने का गुण है अतः १३२००० यी वह सब का आधार बनता है। अन्य १२८०० यो. सभी आधेय बनते हैं। ऐसे आकाश १२०००० यो. के आधार पर तनवात पतला वायु ११८००० यो. जमता है, स्थिर होता है। और इसके H०८००० यो. ऊपर घनवात-जाडे भारी वायु के स्तर जमते हैं । उसे घनवात कहते हैं । यह घनवात स्थिर जमा हुआ होता है । फिर इस पर धनाम्बु–अम्बु अर्थात् पानी... बरफ की तरह जमा हुआ घना पानी होता है इसे घनोदधि कहते हैं । फिर इस घनोदधि पर पृथ्वियाँ होती हैं । इस तरह १ तनवात २ घनवात और ३ घनाम्बु–घनोदधि इस तीन के स्तर पर पृथ्वी स्थिर आधारित है। फिर वापिस खाली आकाश है। असंख्य योजनों के खाली आकाश के बाद वापिस... तनवात-घनवात-घनोदधि की स्थिति आती है। फिर उस पर पृथ्वी... ऐसी सात पृथ्वियाँ अधोलोक में हैं । ये स्वाभाविक ही ऐसी हैं । इनकी रचना करना या बनाने का कोई प्रश्न ही खडा नहीं होता है । जहाँ जिस देश-क्षेत्रकाल-भाव की जो स्थिति है वह वहाँ सदाकाल रहनेवाली स्वाभाविक स्थिति है । इन सातों नरक पृथ्वियों की स्वाभाविक स्थिति की विशेषता- १) प्रथम नरक-रत्नप्रभा नरक पृथ्वी जहाँ पर ऊपरी सतह पर के कंकड़-पत्थर रत्नों की भांति चमकदार होते हैं । उसकी प्रभा से प्रकाश फैलता है । २) शर्करा अर्थात् कंकड पत्थर समस्त पृथ्वी कंकड पत्थर से बनी हुई है, उसे शर्कराप्रभा कहा है । ३) वालुकाप्रभा वालु-रेती को कहते हैं । जहाँ वालु रेती ही भरी हो-ऐसी पृथ्वी वालुकाप्रभा कहलाती है । ४) पंकप्रभा-ऐसी पृथ्वी जो कीचडमय हो । पंक = कीचड को कहते हैं । सारी पृथ्वी मिट्टी-पानी के मिश्रण की कीचडमय है। इसलिए पंकप्रभा नामकरण सार्थक है । ५) धूमप्रभा-धूम अर्थात् धुआँ .... जिस पृथ्वी पटल पर जमें हुए धुएँ जैसी स्थिति हो वैसी पृथ्वी को धूमप्रभा संज्ञा है । ६) तमःप्रभा = अर्थात् अंधकारमय भूमि । ऐसी सर्वथा अंधकार से व्याप्त पृथ्वी को तमःप्रभा कहा है । ७) महातमःप्रभा = अर्थात् जहाँ व्यक्ति स्वयं की अंगुली को भी कभी भी देख न सकें ५८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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