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की व्यवस्था बैठाई गई है। ये सूर्य-चन्द्रादि ज्योतिष्क देवता तीर्छा लोक के अन्दर ही हैं । और मेरू पर्वत के चारों तरफ प्रदक्षिणा देते हुए गोलाकार स्थिति में घूमते हैं । निरंतर गति करते हुए घूमते ही रहते हैं । इसलिए इनकी नियतगति के आधार पर काल की व्यवस्था बैठाई गई है । यह सूर्य-चन्द्र कृत व्यवस्था सिर्फ मनुष्य लोक में ही होने से यहाँ पर ही दिन रात होते हैं। क्योंकि सूर्य-चन्द्रादि तिर्छालोक में - मनुष्य क्षेत्र में ही है । अतः मनुष्य लोक के सिवाय अन्यत्र स्वर्ग-नरक में दिन-रात की तथा महीने - वर्ष की कोई गिनती और व्यवस्था कुछ भी नहीं है । यदि उनको भी महीने - वर्ष कालादि की गिनती करनी हो तो उन्हें यहाँ के ही सूर्य-चन्द्र के आधार पर जो दिन-रात होते हैं उसी के आधार पर गिनती करनी पडती है । यहाँ का सूर्य पृथ्वीतल से सिर्फ ९०० योजन की ऊँचाई तक ही है | अतः सूर्य-चन्द्र का प्रकाश पृथ्वी तल के नीचे अधोलोक में तो जा ही नहीं सकता है । और अधोलोक में तो कोई सूर्य है ही नहीं इसलिए वहाँ कोई प्रकाश की व्यवस्था ही नहीं है । बस, सिर्फ अन्धेरा ही अन्धेरा है । ठीक वैसे ही सूर्य-चन्द्र की स्थिति से १ राजलोक ऊपर पहला- दूसरा स्वर्ग आता है । वहाँ भी सूर्य-चन्द्र का प्रकाश नहीं पहुंचता है और वहाँ स्वर्ग में देवलोक में कोई सूर्य-चन्द्र है भी नहीं । परन्तु हाँ, वहाँ देवलोक में प्रकाशमान जाज्वल्यमान रत्न और मणी हैं। उनके विपुल प्रकाश से वहाँ पर सब कुछ प्रकाशमान ही है । स्वर्ग में प्रकाश पूरा है। जबकि अधोलोक के नरक क्षेत्र में अन्धेरा ही अन्धेरा छाया हुआ है ।
वर्तमान विज्ञान की धारणा - एवं शास्त्रीय मान्यता
REROINEE
आधुनिक विज्ञान की खगोल- भूगोल विषयक मान्यता सर्वथा भिन्न ही है । उनके अनुसार सूर्य स्थिर है और पृथ्वी - चन्द्र-गुरुबुध - मंगल आदि सभी ग्रहमाला में घूमते ही रहते हैं । इस तरह सूर्य को स्थिर बताकर ... अन्य ग्रहों को उसके चारों तरफ घूमते हुए दर्शाए हैं । जैन खगोल शास्त्रों के आधार पर पृथ्वी नचले स्तर पर स्थिर है । अतः उसे
जगत् का स्वरूप
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