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________________ चित्र में दर्शाए अनुसार भरत क्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वतमाला के कारण जो २ भाग उत्तर–दक्षिण हुए। उनके पुनः गंगा–सिन्धु जैसी शाश्वत् नदियों के कारण ६ भाग हो गये। अतः उत्तर भरत क्षेत्र के ऊपरी खण्ड और दक्षिण भरत के नीचे के भी ३ खण्ड । इस तरह कुल मिलाकर भरत क्षेत्र के ६ खण्ड होते हैं । इन ६ खण्डों के मध्यवर्ती मध्य खण्ड में केन्द्र में अयोध्या नगरी मुख्य है। अतः वर्तमान भारत देश की स्थिति इसी मध्यखण्ड में है । तथा वर्तमान सारी दुनिया एवं उसके एशिया, अफ्रिका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रशिया, आदि सभी खंडों का समावेश इसी दक्षिणे भरतार्ध में ही होता है । अतः संपूर्ण जंबूद्वीप के मात्र दक्षिण क्षेत्र की आकृति-स्थिति को देखते हुए इसे लंबे अंडाकार या अंडाकार गोल कहने में कोई आपत्ती जैसा भी नहीं लगता है । क्योंकि सिर्फ दक्षिण भरत क्षेत्र पूर्व-पश्चिम लम्बाई प्रमाण है और दक्षिण भाग में गोलाकार वृत्ताकार है। जैन दर्शन के हिसाब से पृथ्वी मात्र दक्षिण भरत क्षेत्र सीमित ही नहीं है, वह तो १ लाख योजन विस्तार वाली पूर्ण जंबूद्वीप प्रमाण है । अतः पूरी तरह रोटी या थाली आकार की गोल ही है । जैसें एक कढाई में मालपुआ रहे और चारों तरफ घी रहे ठीक वैसे ही बीच में जंबूद्वीप की पूरी पृथ्वी रहे और ... उसके चारों तरफ पूरा २ लाख योजन विस्तार वाला लवण समुद्र है । इससे मध्यवर्ती पूरी पृथ्वी थाली आकार की गोलाकार स्पष्ट है । वर्तमान विज्ञान के खगोलशास्त्रियों- भूगोलशास्त्रियों को अभी तक पूरी जंबूद्वीप की पृथ्वी का कोई पता लगा ही नहीं है। अतः वे भी क्या करें? जैन दर्शन के बृहत्संग्रहणी, क्षेत्रसमास, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थ इस भूगोल-खगोल विषयक विवरण से भरे पडे हैं । जो आधारभूत ग्रन्थ हैं। उत्तर भरत क्षेत्र के उत्तरी सीमा पर आए... लघु हिमवंत पर्वत जो कि पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई विस्तृत पर्वतमाला है उसकी उत्तर दिशा में हिमवंत क्षेत्र है । यह हिमवंत जगत् का स्वरूप
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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