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________________ अक्कीपेठ-बेंगलोर की धन्यधरा पर हुआ सर्वप्रथम- “एक यशस्वी चातुर्मास" ___ (संक्षिप्त रूपरेखा) उत्तर भारत की तरह ही दक्षिण भारत में भी जैन धर्म का प्रसार-प्रचार सदियों से है ही । उत्तर भारत के राजस्थान-गुजरात आदि राज्यों में से गुजराती-मारवाडी-कच्छी आदि अनेक जातियों का आगमन दक्षिण भारत में सदियों से रहा है । दक्षिण भारत में गणनान्तर्गत तामिलनाडु, केरला, कर्नाटक तथा आन्ध्रप्रदेश के ४ राज्यों में विशेषकर कर्नाटक राज्य में श्वेताम्बर जैनों का विशेष ज्यादा बोलबाला रहा है । कर्नाटक राज्य की राजधानी उद्यान नगरी बेंगलोर शहर में आज १९९६ में करीब ४० जैन श्वेताम्बर मंदिरों की गणना होती है, जो गणनापात्र विकास है। ' वर्षों से सुप्रसिद्ध चिकपेठ परिसर के जिनालय के निकटवर्ती विस्तार समान अक्कीपेठ, सुलतान पेठ, कोटनपेठ, सौराष्ट्रपेठ, बिन्नी मिल रोड, पोलीसरोड,आदि परिसरों के बीच सैंकडों जैन परिवारों की आबादी वर्षों से है। परन्तु इन विस्तारों के बीच जैन मंदिर-उपाश्रयादि धर्मस्थानों की कमी वर्षों से मन में चूम रही थी। तथा आवश्यकता महसूस की जाती थी। योगानुयोग इ. स. १९९२ में पू. पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी गणिवर्य म.सा. आदि मुनि मण्डल का एक अद्भुत यशस्वी चातुर्मास चिकपेठ में आदिनाथ जैन श्वे. संघ में हुआ था। चातुर्मास में नगरथपेठ के विशाल प्रवचन मण्डप में हजारों की संख्या में बेंगलोर वासियों ने पूज्यश्री की वाणी का रसपान प्रवचनों में किया था। शिबिरों तथा प्रवचनमाला के विशिष्ट आयोजन, अनुष्ठान-धर्माराधना-तपश्चर्या आदि के विविध आयोजनों ने चातुर्मास की सफलता बढाने में चार चाँद लगा दिये थे। चिकपेठ के चातुर्मास की पूर्णाहुति के पश्चात पूज्य गुरुदेवश्री अक्कीपेठ परिसर में पधारे । जगह के अभाव में सूरज भवन की गच्छी पर पूज्यश्री के प्रवचनों का आयोजन किया। और कहते हुए हर्ष होता है कि नवंबर १९९२ के शुभ दिन “श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ” की स्थापना पूज्यश्री की प्रेरणा से उनकी निश्रा में हुई। विशाल जिनालय का निर्णय __वर्षों से इस विस्तार की जनता जिसकी कमी महसूस कर रही थी और रात-दिन जिसके स्वप्न देख रही थी उस भव्य शिखर बंधी विशाल जिनालय बनाने की प्रेरणा पूज्य
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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