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________________ पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी म.सा. ने दी । और देखते ही देखते शुभ योग में अक्कीपेठ के ही मुख्य राजमार्ग पर ३३०० चौ.फीट की विशाल जमीन खरीदी गई। ___ "श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ" के नाम से ट्रस्ट को रजिस्टर कराया गया। संविधान श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के नियमानुसार हुआ। पूज्य पंन्यासजी म.सा. की प्रेरक प्रेरणा एवं सदुपदेश से कई भाग्यशाली उदार दान दाता श्री संघ के मानद विश्वस्थ-ट्रस्टी बने। कई सभ्य बने । विशाल जिनालय के निर्माण हेतु दानवीरों ने प्रशंसनीय दान राशी भेंट की। परिणाम स्वरूप विशाल जमीन का रजिस्ट्रेशन हुआ। नूतन गृह मंदिर मद्रास-वेपेरी में चातुर्मास हेतु पधारे हुए पूज्य पंन्यासजी श्री अरुणविजयजी म.सा. से विचार विमर्श करने हमारा ट्रस्ट मंडल गया। पूज्यश्री ने छोटा सा गृहमंदिर तुरंत बनाने की प्रेरणा दी, और हमारे ट्रस्टियों ने स्वीकार की । मद्रास के माम्बलम परिसर में आए श्री शान्तिनाथ जैन श्वे. मंदिर से ट्रस्टीगण श्रेष्ठीवर्य श्रीमान शा. माणेकचंदजी बेताला, एवं चन्द्रकान्तभाई टोलिया आदि ने बड़ी खुशी से हमें चाहिए थे वैसे श्री वासुपूज्यस्वामी भगवान की सुन्दर मूर्ति अर्पण की। पूज्यश्रीने शुभ मुहूर्त निकाल कर दिया और हमारे ट्रस्टी गण प्रतिमाजी बड़े ही आदरभाव से बेंगलोर लेकर पधारे। चिकपेठ में प.पू. आचार्यदेव श्री हेमप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पू. आचार्यश्री स्थूलिभद्र सूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में काफी अच्छे प्रवेश के चढावे हुए और स्वागत सामैया सह नवनिर्मित नूतन गृहमंदिर में प्रभुजी का प्रवेश हुआ। चिकपेठ श्री आदिनाथ मंदिर में से भी श्री शान्तिनाथ तथा श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमाजी प्राप्त हुई। इस तरह तीन प्रतिमाजीयों से नूतन गृह मंदिर सुशोभित हो गया। अक्कीपेठ-कोटनपेठ-सुलतानपेठ आदि चारों तरफ के परिसर के अनेक आराधक भाग्यशाली दर्शन-पूजा का लाभ लेने लगे। और देखते ही देखते पजा करनेवालों की संख्या ३०० से ४०० हो गई। तथा दर्शनार्थियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढती-बढती ५०० से ८०० होती गई। विशाल उपाश्रय का आयोजन . जितना ही जिनमंदिर आवश्यक है उतना ही उपाश्रय भी अत्यंत आवश्यक है । पू. साधु-साध्वीजी म.सा. का आगमन होता रहता है । जिनवाणी के व्याख्यानों का श्रवण होने से अनेकों के जीवन में परिवर्तन होता है । पूज्यश्री पंन्यासजी अरुणविजयजी म.सा. की प्रेरक प्रेरणा एवं मार्गदर्शनानुसार श्री संघ ने मंदिर की जगह से लगी हुई जगह खरीदी। यहाँ विशाल उपाश्रय का निर्माण करने की योजना बनाई।
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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