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________________ हुए कितने वर्ष बीते है तो इसके उत्तर में सर्वज्ञ-प्रभु ऐसा फरमाएंगे कि-"वर्ष" यह संज्ञा उत्तर देने में बहुत छोटी पड़ती है। वर्ष, युग, आरे पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, कालचक्र आदि संज्ञाएं इतनी छोटी पड़ती है कि-वे भी "कितने वर्ष बीते' इसकी गिनती का सही उत्तर नहीं दे पाती है। अतः सर्वज्ञ प्रभु इसके उत्तर में अनन्तपुद्गलपरावर्तकाल नामक संज्ञा का प्रयोग करते हैं। अब यह अनन्तपुद्गलपरावर्तकाल क्या है ? इसका विचार करें। "अनन्तपुद्गलपरावर्तकाल" यह जैन परिभाषिक शब्द है। यह कालवाची संज्ञा है। इससे समझने के लिए जैनदर्शन की TIME THEORY काल तत्त्व की प्रक्रिया को समझना जरूरी है जिससे अनन्तपुद्गलपरावर्तकाल समझ में आएगा। TIME-THEORY काल पद्धत्ति काल द्रव्य अजीवतत्त्व है। अजीव तत्त्व के १४ भेद में काल की गणना की गई है । यह प्रदेश समूह रूप अस्तिकाय न होने से पंचास्तिकाय में नहीं गिना जाता है । “वर्तनालक्षणो कालः” इस सूत्र के आधार पर वस्तु नए-पुराने आदि परिवर्तन सूचक लक्षण वाला काल द्रव्य है । काल की गणना के आधार पर ही हम नये-पुराने, उभ्र में छोटी-बड़ी तथा भूत-वर्तमान-भविष्य आदि का व्यवहार करते हैं। सूक्ष्म से स्थूल की तरफ जाते हुए काल की गणना छोटी से बड़ी संख्या होती जाती है । इस तुलना का स्पष्टीकरण निम्न कोष्ठक से स्पष्ट किया जा रहा है। सूक्ष्मतम अविभाज्य काल = १ समय (निश्चिय काल) असख्य समय = १ आवलिका २५६ आवलिका का = १ क्षुल्लक भंव निगोद में । साधिक १७।। क्षुल्लकभव = १ श्वासोश्वास ७ श्वासोश्वास (प्राण) = १ स्तोक ६७ स्तोक = १ लव ३८ लव = १ घड़ी । १ घड़ी = २४ मिनट २ घड़ी = ४८ मिनट ४८ मिनट (दो घड़ी) = १ अंतर्मुहूर्त कर्म की गति न्यारी
SR No.002481
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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