________________
उसी तरह जाति भव्य जीव भी तीनों काल में निश्चित ही मिथ्यात्वी रहता है। यद्यपि वह भव्य की जाति का है फिर भी उसे मोक्षप्राप्ति योग्य सामग्री का मिलना असम्भव ही है, अतः कदापि सम्यक्त्व प्राप्त नहीं कर पाता है ।
क्या जो भव्य होता है वह मिथ्यात्व होता है या जो मिथ्यात्वी होता है। वह भव्य जीव होता है । पहले की भांति इसका उत्तर नहीं मिलता है । इसमें दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के अनुरक हैं, अर्थात् जो भव्य होता है वह मिथ्यात्वी भी होता है और जो मिथ्यात्वी होता है वह भव्य भी होता है, क्योंकि मिथ्यात्व का भव्य के साथ निश्चित होना अनिवार्य नहीं है होता भी है और नहीं भी होता है । मोक्ष प्राप्तियोग्य साधन-सामग्रियाँ
।
उपलब्ध होने पर भव्य
जीव सम्यक्त्व प्राप्त करता है । सम्यक्त्व की उपस्थिति में मिथ्यात्व सम्यक्त्व प्राप्त नहीं करता तब तक अभव्य नहीं । मिथ्यात्व के नष्ट होने के तरह भव्य जीव दो प्रकार के होते हैं।
नहीं रहता है । इस तरह जब तक भव्य जीव मिथ्यात्वी कहलाता है । परन्तु कारण जीव सम्यक्त्वी कहलाता है । इस १. सम्यक्त्वी भव्य, और २. मिथ्यात्वी भव्य । अभव्य जीव अनादि अनन्त त्रैकालिक मिथ्यात्व वाला ही होता है जबकि भव्य जीव अनादि सांत मिथ्यात्व वाला होता है । भव्य जीव के मिथ्यात्व का काल भूतकाल में अनादि होते हुए भी अनन्त नहीं है । सांत है । एक दिन उस मिथ्यात्व का नाश होता है और भव्य जीव सम्यक्त्व प्राप्त करता है, जबकि अभव्य के लिए सम्यक्त्व का प्रश्न अनन्त में भी खड़ा नहीं होता है ।
मोक्ष का अधिकारी कौन ? भव्य या सम्यक्त्वी ?
मोक्ष विषयक निमित को लेकर ही भव्य और अभव्य जीव का भेद लक्षण बनता हैं । अतः भव्य और अभव्य जीव में यह स्पष्ट हो ही गया है कि - भव्य ह मोक्ष का अधिकारी है । अभव्य अनन्त काल में भी कदापि नहीं । अब प्रश्न यह उठता है कि भवी और सम्यक्त्वी जीव में मोक्ष का अधिकारी कौन है ? उत्तर शास्त्राकर महर्षि ने दोनों को मोक्ष प्राप्ति के योग्य बताए हैं । पारिमाणिक भाव से मूलतः जीव के भवी और अभवी दो भेद होते हैं । 'सम्यक्त्वी' यह कोई स्वतः भेद नहीं है । अतः भव्य जीव ही मिथ्यात्व नाश के बाद सम्यक्त्वी बनता है । यह सत्य के स्पष्टीकरणार्थं युक्तिपूर्ण तर्क का आकार इस तरह होगा कि जो भवी होत
कर्म की गति न्यारी
૪