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निर्जीव पदार्थ है । अतः वह मिथ्यात्व का अधिकारी नहीं है । यद्यपि मिथ्यात्व अज्ञानमूलक हैं तथापि ज्ञान के अभावरूप नहीं है परन्तु विपरीत ज्ञानरूप अज्ञान है अजीव पुद्गलादि पदार्थ मूलतः ज्ञानादिमान ही नहीं है । अतः अजीव का सम्यक्त्वी मिथ्यात्वी होने का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता है। ज्ञान दर्शनादि चेतनावान जीव द्रव्य ही मिथ्यात्व या सम्यक्त्व का अधिकारी होता है । अतः मिथ्यात्वादि जीव विपार्क कर्म प्रकृति है । मिथ्यात्व का अधिकारी जीव होता है ।
संसार में जीव भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं । तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में बताए सूत्रानुसार - जीव-भव्या भव्यत्वादीनि च ॥२- ७॥ जीव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं । १. भव्य और २. अभव्य । भव्य और अभव्यपना यह जीव का परिमाणिक भाव है ।
भव्य
(भवी)
५०
जीव T
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भवी का लक्षण सिद्धिगमनयोग्यत्वं भव्यस्य लक्षणम् । मोक्ष में जाने की योग्यता जिसमें पड़ी है वैसा जीव भवी या भव्य कहलाता है । भव्य अर्थात् मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता वाला जीव । मोक्ष प्राप्ति योग्य उपयोगी साधन सामग्री मिलने पर जो जीव मोक्ष प्राप्त कर सके उसे भवी भव्य जीव कहते हैं | अभवी का लक्षण सिद्धिगमनायोग्यत्वं अभव्यस्य लक्षणम् । जिस जीव में मोक्ष में जाने की योग्यता ही नहीं है वह अभव्य - अभवी जीव कहलाता है । मोक्ष के लिए अयोग्य जीव अभवी जीव है । अर्थात् मोक्ष प्राप्ति की सभी साधन-सामग्रियां प्राप्त होने के बावजूद भी जो कभी भी मोक्ष न पा सके और न ही मोक्ष प्राप्ति की इच्छा हो वह अभव्य जीव कहलाता है । जीवत्त्व की दृष्टि से दोनों प्रकार के जीव समान होते हुए भी मोक्षगमन की योग्यता और अयोग्यता के कारण जीव में भव्य और अभव्य दो भेद होते हैं । समझने के लिए उदाहरण है कि - गाय-भैंस का दूध और आकड़े के वृक्ष का दूध दोनों ही दूध की दृष्टि से तो समान ही दिखाई देते हैं, लेकिन दोनों में भेद बहुत बड़ा है । गाय-भैंस का दूध जमा सकते हैं, उसमें से दही, मक्खन, घी आदि बना सकते हैं. परन्तु आकडे के वृक्ष दूध में से दही, मक्खन, घी आदि
कर्म की गति न्यारी
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अभव्य (अभवी)