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के उदय के कारण उत्पन्न हुए अंतत्त्वज्ञान को अज्ञान कहा जाता है अर्थात् जो वस्तु स्वरूप पदार्थ का वास्तविक ज्ञान नहीं है, उसे अज्ञान कहते है । इस तरह विचार किया जाय तो अज्ञान और मिथ्यात्व में कोई विशेष अन्तर नहीं है, करीबकरीब दोनों ही एक दूसरे के अर्थ में समानार्थक हैं । अतः मिथ्यात्व अज्ञानी कहलाता है । अज्ञानी दो प्रकार के होते हैं एक तो वह जो वस्तु तत्त्व के यथार्थ ज्ञान से सर्वथा विपरीत बुद्धि वाला है, और दूसरा बस्तु तत्त्व के यथार्थ स्वरूप को न जानने वाला है । जो तत्त्व का स्वरूप जानता ही नहीं है ऐमा अज्ञानी । इस तरह एक विपरीत ज्ञान वाला और दूसरा ज्ञान के अभाव वाला, अज्ञानी होता है । एक तर्क इस बात को और स्पष्ट करने के लिए पूछा जाता है कि जो-जो मिथ्यात्वी होता है वह अज्ञानी होता है ? या जो जो अज्ञानी होता है वह मिथ्यात्त्वी होता हैं ? जैसे धुएं और अग्नि का तर्क होता है वैसे ही यह भी एक तर्क है। जहां जहां धुआं होता है, वहां वहां अग्नि होती है या जहां अग्नि रहती है, वहां धुआं होता है ? यहां धुएं का अग्नि के साथ अविनाभाव संबंध है । अतः कार्य-कारण भाव की दृष्टि से सत्य यह है कि जहां भी धुंआ रहेगा बहां अग्नि अवश्य ही होगी । परन्तु जहां अग्नि होगी वहां धुंआ रहेगा या न भी रहेगा, जैसे तपे हुए लोहे के गोले में अग्नि जरूर रहती है, परन्तु वहां धुंआ नही होता है । ठीक इस आधार पर समझो कि जहां जहां मिथ्यात्व होता है वहां अज्ञान अवश्य ही होता है । परन्तु जहां अज्ञान होगा वहां मिथ्यात्व हो या न भी हो, क्योंकि मिथ्यात्व का अज्ञान के साथ अविनाभाब सम्बन्ध | ज्ञान के विपरीत भाव रूप अज्ञान के साथ मिथ्यात्व अवश्य ही रहेगा, परन्तु एक विषयक ज्ञान के अभाव रूप अज्ञान या अल्प ज्ञान रूप अज्ञान के साथ मिथ्यात्व नहीं रहेगा । अतः मिथ्यात्वी अवश्य अज्ञानी कहलाएगा, परन्तु अज्ञानो मिथ्यात्वी नहीं भी कहलाएगा। अल्पज्ञानी या ज्ञान के अभाव रूप अज्ञानी के अज्ञान की निवृत्ति शीघ्र ही हो जाएगी, परन्तु विपरीत ज्ञान वाले अज्ञानी ( मिथ्यात्वी) के अज्ञान की निवृत्ति शीघ्र होना सम्भव नहीं हैं । अतः मिथ्यात्वी अच्छा या अज्ञानी अच्छा ? यह प्रश्न कोई पूछे तो हम मिथ्यात्वी को भूल से भी कभी अच्छा नहीं कह सकते हैं, परन्तु एक दृष्टि विशेष से, अल्पज्ञानी या विषय के अभाव रूप अज्ञानी को, थोड़ी देर के लिए, अच्छा जरूर कह सकते हैं । ऐसा अज्ञानी जल्दी समझ जाएगा । ज्ञान को स्वीकार कर लेगा, परन्तु मिथ्यात्वी - विपरीतज्ञानी - अज्ञानी लाख प्रयत्न के बावजूद भी समझेगा या नहीं यह शंकास्पद है । इस तरह मिथ्यात्वी और अज्ञानी में कुछ तात्त्विक भेद है ।
कर्म की गति न्यारी
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