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दर्शनमोहनीय कर्म
सम्यक्त्व मोहनीय
मिश्र मोहनीय
मिथ्यात्व मोहनीय
कर्मग्रन्थकार महर्षि ने दर्शनमोहनीय कर्म की तीन प्रकृतियां गिनाई हैं । १. सम्यक्त्व मोहनीय २. मिश्रमोहनीय और ३. मिथ्यात्वमोहनीय नाम से दर्शनमोहनीय के तीन भेद बताए हैं। ये क्रमश: शुद्ध, अर्धशुद्ध एवं अशुद्ध होते हैं । सम्यक्त्वमोहनीय को शुद्ध कहा है, मिश्र मोहनीय को अर्घशुद्ध कहा है एवं मिथ्यात्व मोहनीय को अशुद्ध कहा है । उदाहरण के लिए जैसे किसी धान्य को शुद्ध, अर्धशुद्ध एवं अशुद्ध तीन प्रकार की अवस्था में रखा जा सकता है । धान्य (अनाज) को साफ करके पूर्णतः शुद्ध कर दिया जाय वह शुद्ध कहलाएगा। २. जिसे कुछ साफ किया जाय और कुछ मलिन रखा जाए वह अर्धशुद्ध कहलाता है, और तीसरा जो साफ किया ही नहीं गया है, वह सर्वथा अशुद्ध ही है । आत्मा पर लगे हुए दर्शनमोहनीय कर्म के पुद्गल परमाणु सर्वथा अशुद्ध ही है, इन्हें मिथ्यात्वमोहनीय कर्म कहते है, और २. जिसने आधे कर्म परमाणु अशुद्ध किये हों और आधे अशुद्ध रहे हों ऐसी अर्धशुद्ध अवस्था को मिश्रमोहनीय कहते हैं। ३. जिसे सर्वथा शुद्ध कर दिए गए हों उसे शुद्ध सम्यक्त्वमोहनीय कहते हैं । इसे ही पानी, कपड़े आदि के दृष्टान्त से भी समझा जा सकता है । १. सर्वथा गंदे पानी के जैसा मिथ्यात्वमोहनीय कर्म । २. कुछ शुद्ध
और कुछ अशुद्ध ऐसे अर्धशुद्ध पानी के जैसा मिश्र मोहनीय कर्म है। ३. सम्पूर्ण शुद्ध पानी के जैसा सम्यक्त्वमोहनीय कर्म है।
दर्शनमोहनीय कर्म
माधा शुद्ध और आधा अशुद्धं ऐसा अर्धशुद्ध जैसा मिश्रमोहनीय कर्म
साफ-स्वच्छ-शुद्ध कपड़े, पानी आदि के जैसा सम्यक्त्वमोहनीय कर्म है
सर्वथा अशुद्ध मैले गंदे पानी, कपड़े आदि के जैसा मिथ्यात्वमोहनीय कर्म
कर्म की गति न्यारी