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________________ महाराजा श्रीकृष्ण ने भगवान नेमीनाथ से सम्यग् धर्मं एवं जीवादि तत्वों का सम्यग् ज्ञान समझकर सम्यग् दर्शन प्रकट किया । यद्यपि व्रत - विरति पच्चक्खाण का आचरण उनसे नहीं हो पाया, फिर भी यादवाधिपति श्रीकृष्ण ने सही सम्यग्दर्शन के आधार पर आगामी चौबीसी में तीर्थंकर बनने का सर्वोच्च पुण्य उपार्जन किया । वे १२ वें अममस्वामी नामक तीर्थंकर बनकर मोक्ष में जावेंगे । परम जिनभक्त रावण विशुद्ध ने सम्यग् दर्शन के बल पर पत्नी मन्दोदरी के साथ, अष्टापद गिरी (महातीर्थ ) पर प्रभु भक्ति में तल्लीन बनकर तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया | महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर बनकर, वे भी मोक्ष में जावेंगे । 8 ग्यारहवीं शताब्दी में गुजरात की गद्दी पर आए राजा कुमारपाल ने कलिकाल सर्वज्ञ पू. हेमचन्द्राचार्य महाराज से अरिहंत धर्म प्राप्त करके, परम शुद्ध सम्यक्त्व रत्न प्राप्त किया। साथ ही देश विरति रूप श्रावक धर्म योग्य बारह व्रत स्वीकार करके वे परमार्हत् जैन श्रावक बने । उनकी सम्यग् श्रद्धा अनुपम एवं विशुद्ध कक्षा की थी । उन्होंने भी स्व- आत्मा का कल्याण साधा एवं अल्प भवों में ही मोक्ष सिधावेंगे | शास्त्रों में ऐसे सैकड़ों दृष्टान्त हैं एवं चरित्र ग्रन्थों में ऐसे अनेक महापुरुषों के चरित्र लिखे गये हैं, जिन्होंने सम्यग् दर्शन रूपी रत्न को पाकर ही मोक्ष गये हैं । तथा अनागत (भविष्य) काल में भी जावेंगे । ऐसे सम्यग् दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति हो, इसलिए परमात्मा पार्श्व प्रभु के चरण कमल में अन्तिम प्रार्थना इस प्रकार की गई है तुह सम्मत्ते लद्ध चिन्तामणि कप्पपाय वन्महिए । पावंति अविग्धेणं, जीवा अयरा मरं ठाणं ||४|| “श्री उवसग्गहरं स्त्रोत" में चौदह ( चर्तुदश) पूर्वधारी प. पूज्य भद्रबाहु स्वामी लिखते हैं कि - हे प्रभु ! चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्ष से भी अधिक कर्म की गति न्यारी १२७
SR No.002481
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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